Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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| भद्रबाहु संहिता ।
भावार्थ-उल्काओं के समान ही बिजलियों का ज्ञान है अब बादलों का लक्षण उनका ज्ञान कराने के लिये मैं आपको कहूँगा आप अच्छी तरह से बादलों का ज्ञान करों॥२५॥
विशेष—अब आचार्य बिजली के लक्षण व फल का निरूपण करते है, जो आकाश में मेघ पटलों के बीच में चमकती है अन्धेरे में उसके चमकने पर एक क्षण के सिर उजाला ही जाला हो जाता है, इसका नाम विद्युत है, यह बड़ी चंचल होती एक क्षण में कहाँ चमकती है तो एक क्षण में कहाँ, निर्मल आकाश में यह बिजली नहीं चमकती है, चारों दिशाओं में ये बिजली चमकती है प्रत्येक दिशा का फल अलग-अलग होता है, बिजली के चमकते समय अति निकट चमकती है तो शीघ्र फल अति दूर चमकती है तो देर से फल होता है इस विद्युत के कई नाम आचार्य कहते है इसके वर्ण भी काले, नीले, लाल, सफेद, पीले आदि होते है वर्गों के अनुसार इसका फल भी अवगत करना चाहिये।
इसके आचार्य श्री, सौदामिनी, पूर्वा, निरभ्रा, मिश्रकेशी, क्षिप्रगा, अशनि, कृष्णा, स्निग्धा, अस्निग्धा आदि भेद है।
इस प्रकार से बिजली के चमकने पर वर्षा का ज्ञान होता है बिजली कहाँ चमक रही है किस दिशा में चमक रही है किस वर्ण की चमक रही है स्निग्ध है या रूक्ष है, ऋतुओं के अनुसार विद्युत चमकने का अलग फल हो जाता है, यह बिजली सौम्य भी होती है और क्रूर भी होती है भयंकर रूप होकर जहाँ पर गिर पड़ती है वहाँ विनाश हो जाता है मकानों पर गिरे तो मकान गिर पड़े, पेड़ों पर गिरे तो पेड नष्ट हो जावे किसी व्यक्ति के ऊपर गिरे तो उसके प्राण हरण कर लेवे, शान्त और सौम्य बिजली चमके शुभ हो तो वह सुभिक्ष, सुवर्षा और शुभ की सूचक होती है, सर्वत्र वर्षा अच्छी होती है धान्य अच्छा पकता है, नदी नाले जोर से बहने लगते हैं कुप, तालाब, बावड़ी, सरोवर आदि भर जाते हैं, इससे राष्ट्र के लिये भी शुभाशुभ मालूम पड़ता है। डॉ. नेमीचन्द्र आरा का मन्तव्य
विवेचन—बिजली के निमित्तों द्वारा प्रधानत: वर्षाका विचार किया जाता है। रात्रिमें चमकनेसे वर्षाके सम्बन्धमें शुभाशुभ अवगत करनेके साथ फसलका भविष्य भी ज्ञात किया जा सकता है। जब आकाशमें घने बादल छाये हुए हों, उस समय पूर्व दिशामें बिजली कड़के और इसका रंग श्वेत या पीत हो तो निश्चयतः वर्षा