Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
View full book text
________________
भद्रबाहु संहिता
भावार्थ — इस प्रकार अगर उपर्युक्त परिवेष हो तो समझो सर्वधान्यो का नाश होगा, और वृक्ष गुल्म, लताओं का भी नाश होगा, ऐसे परिवेष सब प्रकार के नाश की सूचना देते हैं, ऐसे परिवेषों से जनता को भी हानि होती है ॥ १५ ॥
यतः
ततः
खण्डस्तु प्रयत्नं
प्रविशतेपर: ।
exयेत तत: रक्षणे पुरराष्ट्रयोः ।। १६ ।।
कुर्वीत
( यतः ) यत ( खण्डस्तु) खण्डरूप में परिवेश (दृश्येत् ) दिखाई दे तो, ( तत: ) उसी दिशा से (परः) परचक्र ( प्रविशेत) प्रवेश करता है (ततः) इसलिये ( पुरराष्ट्रयोः) पुर राष्ट्र का ( रक्षणे ) रक्षा करने के लिये ( प्रयत्नं ) प्रयत्न ( कुर्वीत) करना चाहिये । भावार्थ — जब दिशा का सूर्य के ऊपर होने वाला परिवेष खण्ड रूप दिखाई दे, समझो उस दिशा से परशत्रु का आक्रमण स्वदेश के ऊपर होने वाला है ऐसा जानकर उसी दिशा में परचक्र को रोकने का प्रयत्न राजा को करना चाहिये, नहीं तो आक्रमण होकर जनता को कष्ट पहुँचेगा ॥ १६॥
रक्तो वा यथाभ्युदितं कृष्ण पर्यन्त एव च । परिवेषो रविं रुन्ध्याद् राजव्यसनमादिशेत् ॥ १७ ॥
( यथाभ्युदितं ) जैसे उदय होते हुऐ (रवि) रवि को (रक्तो) लाल (बा) व (कृष्ण) काले ( पर्यंत) पर्यन्त (एव च ) ही (परिवेषो) परिवेष (रुन्ध्याद्) रुन्धन करता है तो (राज) राज्य ( व्यसनं) व्यसन रूप (आदिशेत् ) हो जायगा ।
यदात्रिवर्ण तद्राष्ट्रमचिरात्
भावार्थ यदि सूर्य को आच्छादित कर परिवेष लाल, पीला, हरा, काला वर्ण वाला वर्ण का हो तो समझो पूरे राज्य के लोग व्यसन में व्याप्त हो जायगें । उस राजा की प्रजा व्यसनी बन जायगी राजा का राज्य अस्त-व्यस्त हो जायगा ॥ १७ ॥
७४
पर्यन्तं
परिवेषो
दस्युभिः
दिवाकरम् । परिलुप्यते ॥ १८ ॥
कालाद्
(दिवाकरम् ) सूर्य के ऊपर ( यदा) जब (त्रिवर्ण) तीन वर्ण का ( परिवेषो )
परिवेष होता है तो (तद्) उस (राष्ट्र) राष्ट्र में (अचिरात् ) चिर (कालाद) काल तक ( दस्युभिः) डाकुओं के द्वारा (परिलुप्यते) परिलिप्त होकर उन्हीं का भय बढ़
जायगा ।