Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
त्रिकोटि यदि दृश्येत परिवेषः कथञ्चन।
त्रिभाग शरत्र वध्योऽसाविति निर्ग्रन्थशासने॥२८।। (कथञ्चन) कदाचित (परिवेष) परिवेष (त्रिकोटि ) तीन कोणे वाला (यदि) यदि (दृश्येत्) दिखलाई पड़े तो (त्रिभाग शस्त्र) तीन भाग शस्त्र से (वध्यो) लोग मारे जाते हैं (असाविति) ऐसा (निर्ग्रन्थ) निर्ग्रन्थ (शासने) शासन में कहा गया
है।
भावार्थ-निर्ग्रन्थ शासन में ऐसा कहा गया है कि परिवेष यदि तीन कोणे वाला दिखलाई पड़े जानो युद्ध के अन्दर सेना का तीन भाग युद्ध में शस्त्र से मारा जाता है॥२८॥
चतुरस्त्रो यदा चापि परिवेष: प्रकाशते।
क्षुधया व्याधिभिश्चापि चतुर्भागोऽवशिष्यते।। २९ ।। (यदा) जब (चापि) भी (चतुरस्त्रो) चार कोने वाला (परिवेष:) परिवेष (प्रकाशते) दिखलाई दे तो, (क्षुधया) क्षुधा (व्याधि) व्याधि (भिश्चापि) और भी रोग होकर (चतुर्भागो) चार भाग (अवशिष्यते) जनसंख्या बाकी बच जाती है।
भावार्थ-यदि चार कोने वाला परिवेष दिखलाई पड़े जनता क्षुधा से पीड़ित होकर और नाना प्रकार के रोगों से पीड़ित होकर मर जाती है लोग चतुर्थास ही बच पाते है बाकी सब समाप्त हो जाते है॥२९॥
अर्द्ध चन्द्र निकाशस्तु परिवेषो रूणद्धि हि।
आदित्यं यदि वा सोमंराष्ट्र सङ्कुलतां व्रजेत॥३०॥ (अर्द्धचन्द्र) अर्द्धचन्द्र के (निकाशस्तु) आकार वाला (परिवेषोः) परिवेष यदि (आदित्यं) रवि को (यदि वा) या (सोम) चन्द्र को (रूणाद्धिहि) आच्छादित करता है तो (राष्ट्र) देश में (संकुलतां) आकुलता (व्रजेत) बढ़ जाती है।
भावार्थ-यदि अर्द्ध चन्द्राकार परिवेष, सूर्य या चन्द्रमा को आवृत करता है तो देश में व्याकुलता बढ़ जाती है देशवासी किसी भी कारणों से परेशान रहते है॥३०॥