Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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द्वितीयोऽध्यायः
लगभग होती है। ज्योतिष शास्त्र में इन उल्काओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है । इनके पतन द्वारा शुभाशुभ का परिज्ञान किया जाता है।
उल्का के ज्योतिष में पाँच भेद हैं- धिष्ण्या, उल्का, अशनि, विद्युत और तारा! उल्का का फल १५५ दिनों में, धिष्ण्या और अशनिका ४५ दिन में एवं तारा और विद्युत का ६ दिनों में फल प्राप्त होता है। अशनि का आकार चक्र के समान है, यह बड़े शब्द के साथ पृथ्वी फाड़ती हुई मनुष्य, गज, अश्व, मृग, पत्थर, गृह, वृक्ष और पशुओं के ऊपर गिरती है। तड़-तड़ शब्द करती हुई विद्युत अचानक प्राणियों को त्रास उत्पन्न करती हुई कुटिल और विशाल रूप में जीवों और ईंधन के ढेर पर गिरती है । पतली और छोटी पूँछ वाली धिष्ण्या जलते हुए अंगारे के समान चालीस हाथ तक दिखलाई देती है। इसकी लम्बाई दो हाथ की होती है। तारा ताँबा, कमल, तार रूप और शुल्क होती है, इसकी चौड़ाई एक हाथ और खिंचती हुई-सी आकाश में तिरछी या आधी उठी हुई गमन करती है। प्रतनुपुच्छा विशाला उल्का गिरते-गिरते बढ़ती है, परन्तु इसकी पूँछ छोटी होती जाती है, इसकी दीर्घता पुरुष के समान होती है, इसके अनेक भेद हैं। कभी यह प्रेत, शास्त्र, खर, करभ, नाका, बन्दर, तीक्ष्ण दंत वाले जीव और मृग के समान आकार वाली हो जाती है। कभी गोह, साँप और धूम रूप वाली हो जाती है। कभी यह दो सिर वाली दिखाई पड़ती है। यह उल्का पापमय मानी गई है।
कभी ध्वज, मत्स्य, हाथी, पर्वत, कमल, चन्द्रमा, अश्व, तप्तरज और हंस के समान दिखलाई पड़ती है, यह उल्का शुभकारक पुण्यमयी है। श्रीवत्स, वज्र, शंख और स्वस्तिक रूप में प्रकाशित होने वाली उल्का कल्याणकारी और सुभिक्षदायक है । अनेक वर्णवाली उल्काएँ आकाश में निरन्तर भ्रमण करती रहती हैं।
जिन उल्काओं के सिर का भाग मकर के समान और पूँछ गाय के समान हो, वे उल्काएँ अनिष्ट सूचक तथा मनुष्य जाति के लिए भयप्रद होती हैं । चमक या प्रकाश वाली छोटी-छोटी उल्काएँ जिनका स्वरूप धिष्ण्या के समान है, किसी महत्त्वपूर्ण घटना की सूचना देती है । तार के समान लम्बी उल्काएँ, जिनका गमन सम्पात बिन्दु से भूमण्डल तक एक-सा हो रहा है, बीच में किसी भी प्रकार का विराम नहीं है, वे व्यक्ति जीवन की गुप्त और महत्त्वपूर्ण बातों को प्रकट करती