Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्यायः
भावार्थ-सोम और सूर्य के अस्त होते समय यदि उल्का दिखाई पड़े तो आने वाली आक्रमणिक सेना की दिशा में आगन्तुक सेना का नाश होगा ऐसी सूचना मिलेगी। ४३॥
उद्गच्छेत् सोममर्क वा यधुल्का प्रतिलोमतः ।
प्रविशेन्नागराणां स्याद् विपर्यास स्तथागते॥४४॥ (यद्युल्का) यदि उल्का, (प्रतिलोमत:) प्रतिलोम मार्ग से (सोम) सोम (वास) अर्क सूर्य के (उदगच्छेत्) उदय होते हुऐ (प्रविशेन्न) प्रवेश करे तो, (नागराणां) नगरों के लिए (विपर्यास) यायी के लिए (स्तथागते) दोनों के लिये विपरीतफल (स्याद्) होता है।
भावार्थ-यदि उल्का प्रतिलोम मार्ग से चंद या सूर्य के उदय होते हुये मंडल में प्रवेश करते हुऐ दिखे तो नगरस्थ राजा के लिये और आक्रमणिक राजा के लिये, दोनों के लिये ही अशुभफल देने वाली होती है।। ४४॥
एषैवास्तगते उल्का आगन्तूनां भयं भवेत्।
प्रतिलोमा भयं कुर्याद् यथास्तं चंद्रसूर्ययोः॥४५ ।। (एषैवा) इसी प्रकार (अस्तगते) अस्त होते हुऐ (चंद्र) चंद्रमा (सूर्य को) सूर्य के (प्रतिलोमा) प्रतिलोम मार्ग से समाप्त हो जावे तो (आगन्तूनां) आने वाले के लिये और स्थायी के लिये (भयं) भय (भवेत्) होता है।
भावार्थ—इसी प्रकार सूर्य चंद्र के अस्त होते समय उसके मंडल में प्रतिलोम मार्ग से प्रवेश कर समाप्त हो जावे तो समझो आने वाले राजा को और स्थायी राजा को दोनों को ही भय उत्पन्न होगा ।। ४५॥
उदये भास्करस्योल्का यातोऽग्रतोऽभिसर्पति।
सोमस्यापि जयं कुर्यादेषां पुरस्सरा वृत्तिः ।। ४६ ॥ (उदये) उदय होते हुये (भास्करस्यो) सूर्य के (अभिसर्पति) आगे-आगे (यातोऽ) गमन करे, (उल्का) उल्काओं (ऐषां) इसी प्रकार (सोमस्यापि) चंद्रमा के आगे (पुरस्सरावृत्ति) गमन करे तो (जयं) जयको (कुर्याद्) करने वाला होता है।