Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्याय:
तिथिश्च करणं चैव नक्षत्राश्च मुहूर्ततः।
ग्रहाश्च शकुनञ्चैष दिशो वर्णाः प्रमाणतः॥६७॥ (तिथिश्च) तिथि, (करण) करण (च) और (नक्षत्राः) (मुहर्ततः) मुहर्तत (ग्रहाश्च) ग्रह (शकुनञ्चैव) शकुन (च) और (दिशो) दिशा (वर्णाः) वर्ण (प्रमाणत:) लम्बाई चौड़ाई आदि।
भावार्थ-उल्का का पतन तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त, ग्रह शकुन और दिशा वर्ण और प्रमाण के अनुसार होता है उसी को देख कर फलानिर्देश करना चाहिये॥६७॥
निमित्तादनुपूर्वाच्च पुरुषः कालतो बलात्।
प्रभावाच गोषमा काया फलमादिशेत् ।। ६८॥ (उल्कायां) उल्काओं का (निमित्तानु) निमित्तों के अनुसार (पूर्वाच्च) पूर्व में (पुरुषः) पुरुषों के द्वारा (कालतो) काल (बलात्) बल, (प्रभावाश्च) प्रभाव के (गतेश्चैव) जाने पर (फलमादिशेन) फल को कहना चाहिये।
भावार्थ-उल्काओं का फल निमित्त मिलने पर पुरुषों के द्वारा काल, बल प्रभाव के जाने पर पुरुषों को फल कहना चाहिये।। ६८॥
एतावदुक्तमुल्कानां लक्षणं जिन भाषितम्।
परिवेषान् प्रवक्ष्यामि तान्निबोधत तत्त्वतः ।। ६९॥ (एतावदुक्तं) इतने तक (उल्कानां) उल्काओं का (लक्षणं) लक्षण (जिन) जिनेन्द्र के द्वारा (भाषितम्) कहा गया है अब (परिवेषान्) परिवेषों को (प्रवक्ष्यामि) कहूँगा, (तान्त्रि) उसका (तत्त्वतः) ज्ञान (बोधतः) करो, जानो।
___ भावार्थ-भगवान जिनेन्द्र के द्वारा कहा गया उल्काओं का स्वरूप अब तक मैंने कहा अब मैं परिवेषों व उनके फल का वर्णन करता हूँ, तुम अच्छी तरह से जानो। इति
विशेष—इस तीसरे अध्याय में भद्रबाहु श्रुत केवली ने उल्काओं का वर्णन किया है जो उल्का निमित्त पाकर नाना प्रकार के ग्रहों के साथ मिलकर अनेक वर्णवाली होकर पृथ्वी पर गिरती हुई दिखती हैं, इन सब उल्काओं का वर्णन इस