Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्यायः
को कष्ट होता है। नारी जाति के लिए इस प्रकार का उल्कापात अनिष्ट का सूचक है। शूकर और चमगादड़ के समान आकार की उल्का कृत्तिका, विशाखा, अभिजित्, भरणी और आश्लेषा नक्षत्र को प्रताड़ित करती हुई पतित हो तो युवक-युवतियों के लिए रोग की सूचना देती है। इन्द्रध्वज के आकार की उल्का आकाश में प्रकाशमान होकर पतित हो तथा पृथ्वीपर आते-आते चिनगारियाँ उड़ने लगें तो इस प्रकार की उल्काएँ कारागार जाने की सूचना व्यक्ति को देती हैं। सिर के ऊपर पतित हुई उल्का चन्द्रमा या नक्षत्रों का घात करती हुई दिखलाई पड़े तो आगामी एक महीने में किसी आत्मीय की मृत्यु या परदेशगमन होता है। सामने कृष्ण वर्ण की उल्का गिरने से महान कष्ट, धनक्षय, विवाद, कलह और झगड़े होने की सूचना मिलती है। अश्निरी, कृतिका, आर्द्रा, आवा, मघा, विशाखा, अनुराधा, मूल, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वाभाद्रपद इन नक्षत्रों से पूर्वोक्त प्रकार की उल्का का अभिघात हो तो व्यक्ति के भावी जीवन के लिए महान कष्ट होता है। पीछे की ओर कृष्णवर्ण की उल्का व्यक्ति को असाध्य रोग की सूचना देती है । विचित्र वर्ण की उल्का मध्यरात्रि में च्युत होती हुई दिखलाई पड़े तो निश्चयतः अर्थह. नि होती है। धूम्रवर्ण की उल्काओं का पतन व्यक्तिगत जीवन में हानि का सूचक है। अग्नि के समान प्रभावशाली, वृषभाकार उल्कापात व्यक्ति की उन्नति का सूचक है । तलवार की द्युति समान उल्काएँ व्यक्ति की अवनति सूचित करती है। सूक्ष्म आकार वाली उल्काएँ अच्छा फल देती हैं और स्थूल आकार वाली उल्काओं का फलादेश अशुभ होता है। हाथी, घोड़ा, बैल आदि शूपओं के आकार वाली उल्काएँ शान्ति और सुख की सूचिकाएँ हैं । ग्रहों का स्पर्श कर पतित होने वाली उल्काएँ भयप्रद हैं और स्वतन्त्र रूप से पतित होनेवाली उल्काएँ सामान्य फलवाली होती हैं। उत्तर और पूर्व दिशा की ओर पतित होनेवाली उल्काएँ सभी प्रकार का सुख देती हैं; किन्तु इस फल की प्राप्ति रात के मध्य समय में दर्शन करने से ही होती है।
कमल, वृक्ष, चन्द्र, सूर्य, स्वास्तिक, कलश, ध्वजा, शंख, वाद्य ढोल, मंजीरा, तानपूरा और गोलाकार रूप में उल्काएँ रविवार, भौमवार और गुरुवार को पतित होती हुई दिखलाई पड़े तो व्यक्ति को अपार लाभ अकल्पित धनकी प्राप्ति,
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