Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
करती है आप समझिये अग्नि की ज्वाला के समान उस-उस वर्ण वालों का शीघ्र नाश हो जाता है।॥२१॥
अनन्तरां दिशं दीप्ता येषामुल्काऽग्रतः पतेत्।
तेषां स्त्रियश्च गर्भाश्च भयमिच्छन्ति दारूणम्॥२२॥ (येषां) जिस (दिशं) दिशा में (अनन्तरां) अनन्तर होकर (उल्का) उल्का (दीप्ता) दीप्तिमान होकर (अग्रत:) आगे से (पतेत्) गिरे तो (तेषां) उस दिशा की (स्त्रियश्च) स्त्रियों के (गर्भाश्च) गर्भ को (दारूणम्) दारूण (भयमिच्छन्ति भय को करती है।
भावार्थ- उल्कादि प्रकाश करती हुई अव्यवहित दिशा को अग्र भाग से गिरे तो स्त्रियों के गर्भ को दारूण दुःख उत्पन्न होता है याने स्त्रियों के गर्भ गिरने की संभावना रहती है।॥२२॥
कृष्णा नीला च रूक्षाश्च प्रतिलोमाश्च गर्हिताः।
पशुपक्षि सुसंस्थाना भैरवाश्च भयावहाः॥ २३ ॥ (कृष्णा) काली (नीला) नीली वर्ण की उल्का (रूक्षाश्च) रूक्ष होकर (प्रतिलोमाश्च) विपरीत मार्ग से होकर (गर्हिता) गिरे तो (च) और (पशु) पशु (पक्षि) पक्षी (सुसंस्थाना) के आकार वाली होकर गिरे तो (भैरवाश्च) भैरव रूप को धारण करने वाली (भयावहाः) भय को उत्पन्न करने वाली है।
भावार्थ-काली वर्ण की उल्का, नीली वर्ण की उल्का रूक्ष होकर विपरीत मार्ग याने वाम मार्ग होकर और पशु-पक्षियों की आकार वाली होकर गिरे तो महान भैरव रूप भय को उत्पन्न करने वाली होती है॥२३ ।।
अनुगच्छन्ति याश्चोल्का वाह्यास्तूल्का समन्ततः।
वत्सानुसारिणी नाम सा तु राष्ट्र विनाशयेत् ।। २४ ॥ (या) जो (उल्का) उल्का (अनुगच्छन्ति) मार्ग में गमन करती हुई (वाह्यास्तु) बाहर की उल्काओं से टकरा जावे (सा) वो (वत्सानुसारिणीनाम) वत्सानुसारिणी नाम की उल्का है (तु) वह (राष्ट्र) राष्ट्र को (विनाशयेत) विनाश करती है।