Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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तृतीयोऽध्यायः
जैसे ( मुखाः) मुख से ( प्रपतन्ति ) जिस दिशा में गिरती है ( तस्यां ) उसी ( दिशि ) दिशा में (भयं ) भय ( उपस्थितम् ) उपस्थित होगा (ततो) ऐसा (विजानीयात् ) जानना चाहिए।
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भावार्थ — जिस दिशा में उल्का, अशनि और धिष्ण्य, मुख से गिरती है तो उसी दिशा में भय उपस्थित होगा, ऐसा तुमको जानना चाहिए ॥ ६ ॥
सिंह, शूलपट्टिशसंस्थाना
पाशवज्रासिसदृशा:
व्याघ्र, वराहोष्ट्र, श्वानद्विपि - खरोपमाः । धनुर्वाण गदामयाः ।। ७।। परश्नर्थेन्दुसन्निभाः ।
गोधा, सर्प, श्रृंङ्गालानां सदृशाः शल्यकस्य च ॥ ८ ॥ मेषाजमहिषाकाराः
काकाsकृतिवृकोपमाः । पक्ष्यकोदग्रसन्निभाः ॥ ९ ॥
कबन्धसदृशाश्च याः ।
शश मार्जार सहशा:
ऋक्ष, वानर, संस्थाना:
अलात चक्र सहशा: वक्राक्ष प्रतिमाश्चयाः ।। १० ।। शक्ति लागूल संस्थानां यस्याश्चोभयतः शिरः । सास्नन्ध माना नागाभा: प्रपतन्ति स्वभावतः ॥ ११ ॥
(सिंह) सिंह ( व्याघ्र ) व्याघ्र (वराह) सूकर (उष्ट्र) ऊंट (स्वान) कुत्ता (द्वीपि) तेंदुआ ( खरोपमाः) गधा (शूल: ) त्रिशूल ( पट्टि) एक प्रकार के आयुध का आकार (धनु) धनुष (र्वाण ) बाण ( गदामयाः) गदामय (पाश) पाश ( वज्रा ) वज्र (असि ) तलवार के सदृश (परश्न) फरसा (अर्धेन्दु) अर्द्ध चंद्राकार कुल्हाड़ी (सन्निभा) सरीके रहते हैं (गोधा ) गोह, सर्प ( श्रृगालानां ) सियाल ( सदृश: शल्यकस्य च ) शल्य के आकार के और (मेषा) भैंसा (अज) बकरा (महिषाकारा) महिषाकार ( काका कृति) काक के आकार वाले ( वृकोपमाः) भेड़िया सरीखे (शश) शसला ( मार्जार) बिल्ली के सदृश ( पक्ष्यकोदग्र सन्निभाः) बड़े-बड़े पंख वाले पक्षी के आकार (ऋक्ष) रीछ ( वानर ) बंदर के ( संस्थाना) संस्थान वाले ( कबन्ध सदृशाश्च) सिर रहित धड़ सदृश (च) और (या) जो ( अलात चक्र) कुम्हार के चक्के के (सहशा) आकार वाले ( वक्राक्ष) टेड़ी आँख वाली (प्रतिमाश्चयाः) प्रतिमा के समान (शक्ति) शक्ति (लाङ्गुल)