Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
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भद्रबाहु संहिता
उत्पात स्वभाव के विपरीत घटित होना ही उत्पात है। उत्पात तीन प्रकार के होते हैं दिव्य, अन्तरिक्ष और भौम। नक्षत्रों का विकार, उल्का, निर्घात, पवन
और घेरा दिव्य उत्पात हैं, गन्धर्व नगर, इन्द्रधनुषादि अन्तरिक्ष उत्पात हैं और चर एवं स्थिर आदि पदार्थों से उत्पन्न हुए उत्पात भौम कहे जाते हैं।
ग्रहचार—सूर्य, चन्द्र, भौम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु इन ग्रहों के गमन द्वारा शुभाशुभ फल अवगत करना ग्रहचार कहलाता है। समस्त नक्षत्रों
और राशियों में ग्रहों की उदय, अस्त, बक्री, मार्गी इत्यादि अवस्थाओं द्वारा फल का निरूपण करना ग्रहचार है।
ग्रहयुद्ध-मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि इन ग्रहों में से किन्हीं दो ग्रहों की अधोपरि स्थिति होने से किरणें परस्पर में स्पर्श करें तो उसे ग्रहयुद्ध कहते हैं। बृहत्संहिता के अनुसार अधोपरि अपनी-अपनी कक्षा में अवस्थित ग्रहों में अतिदूरत्वनिबन्धन देखने के विषय में जो समता होती है, उसे ग्रहयुद्ध कहते हैं। ग्रहयुति और ग्रहयुद्ध में पर्याप्त अन्तर है। ग्रहयुति में मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि इन पाँच ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब सूर्य या चन्द्र के साथ समरूप में स्थित होते हैं, तो ग्रहयुक्ति कहलाती है और जब मंगलादि पाँचों ग्रह आपस में ही समसूत्र में स्थित होते हैं तो ग्रहयुद्ध कहा जाता है। स्थिति के अनुसार ग्रहयुद्ध के चार भेद हैं- उल्लेख, भेद, अंशुविमर्द और अपसव्य । छायामात्र से ग्रहों के स्पर्श हो जाने का उल्लेख, दोनों ग्रहों का परिमाण यदि योगफल के आधे से ग्रहयुद्ध का अन्तर अधिक हो तो उसे युद्ध को भेद, दो ग्रहों की किरणों का संघट्ट होना अंशुविर्मद एवं दोनों ग्रहों के अन्तर साठ कला से न्यून हो तो उसको अपसव्य कहते हैं।
वार्तिक या अर्धकाण्ड—ग्रहों के स्वरूप, गमन, अवस्था एवं विभिन्न प्रकार के बाह्य निमित्तों के द्वारा वस्तुओं की तेजी मन्दी अवगत करना अर्धकाण्ड
स्वप्न-चिन्ताधारा दिन और रात दोनों में समान रूप से चलती है, लेकिन जागृतावस्था चिन्ताधारा पर हमारा नियंत्रण रहता है, पर सुषुप्तावस्था की चिन्ताधारा पर हमारा नियंत्रण नहीं रहता है, इसीलिए स्वप्न भी नाना अलंकारमयी प्रतिरूपों में दिखलाई पड़ते हैं। स्वप्न में दर्शन और प्रत्यभिज्ञानुभूति के अतिरिक्त शेषानुभूतियों