Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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आमा ४८-४९
गुणस्थान / ४९
परितन ( आगे के ) समय के परिणाम नीचे के ( पूर्व के ) समय के परिणाम सदृश प्रवृत्त होते हैं, अधःप्रवृत्तकररण है । इस करण में उपरिम समय के परिणाम नीचे के समय में भी पाये जाते यह उक्त कथन का तात्पर्य है |
प्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण और श्रनिवृत्तिकरण इन तीनों का काल यद्यपि अन्तर्मुहूर्तहै, तथापि श्रनिवृत्तिकरण का काल सबसे कम है, उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरण का काल और उससे संख्यातगुरणा अधः प्रवृत्तकरण का काल है ।
अधःप्रवृत्तकरण के प्रथम समय से लेकर अन्तिम समय तक पृथक्-पृथक् प्रत्येक समय में संख्यात लोक प्रमाण परिणामस्थान होते हैं जो कि छह वृद्धियों के क्रम से अवस्थित और स्थितिपसरणयादि के कारणभूत हैं । श्रधः प्रवृत्तकरण के प्रथम समय में असंख्यातलोक प्रमाण रामस्थान होते हैं । पुनः द्वितीय समय में वे ही परिणामस्थान अन्य अपूर्वपरिणामस्थानों के विशेष ( चय) अधिक होते हैं ।
शङ्का - विशेष (वय) का प्रमाण कितना है ?
समाधान - प्रथम समय के परिणामस्थानों में अन्तर्मुहूर्त का भाग देने पर जो एक भाग आमा (संस्यातलोकप्रसारण) परिणाम प्राप्त होते हैं, उतना है ।
इस प्रकार इस प्रतिभाग के अनुसार प्रत्येक समय में विशेषाधिक परिणामस्थान करके प्रमः प्रवृत्तकररण के अन्तिम समय तक ऐसे हो जानना चाहिए ।
अधःप्रवृत्तकरण के प्रथम समय में जो परिणामस्थान होते हैं, उनके अन्तर्मुहूर्त काल के जितने समय हैं, उतने खण्ड करने चाहिए ।
शङ्का - इस ग्रन्तर्मुहूर्त का क्या प्रमाण है ?
समाधान — प्रधः प्रवृत्तकरणकाल का संख्यातवाँ भाग इस अन्तर्मुहूर्त का प्रमाण है ।
प्रथम समय के परिणामस्थानों के जितने खण्ड होते हैं, उतने समयों का निर्वर्मणाकाण्डक होता है, क्योंकि वहीं तक प्रथम समय के परिणामों की सदृशता सम्भव है। उससे आगे प्रथम समय परिणामों की सदृशता का विच्छेद हो जाता है । प्रथम समय के परिणामों के या अन्य समय के परिणामों के जो खण्ड होते हैं, वे परस्पर सदृश नहीं होते, विसदृश होते हैं, क्योंकि वे खण्ड एक-दूसरे की अपेक्षा विशेष अधिक क्रम से अवस्थित हैं । अन्तर्मुहूर्त का भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो वह विशेष का प्रमाण है । पुनः प्रथम खण्ड को छोड़कर इन्हीं परिणामस्थानों को दूसरे समय में परिपाटी को उल्लंघन कर स्थापित करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इस द्वितीय समय में श्रसंख्यात बैंक प्रमाण अन्य अपूर्व परिणामस्थान होते हैं। वे प्रथम समय के अन्तिमखण्ड के परिणामों में मुहूर्त का भाग देने पर जो लब्ध प्राप्त हो, उतने अन्तिमखण्ड परिणामों से विशेष अधिक होते इन परिणामों को द्वितीय समय के अन्तिम खण्डरूप से स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार
अ.ष. पु. १२ पृ. २३३ । २. ज ध. पु. १२ पृ. २३६-३७ ।