Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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सम्यक मार्गणा / ६८७
संत सम्यष्टि के अवहार काल से सम्यग्मियादृष्टि का अवहारकाल प्रसंख्यातगुणा है । सम्यग्मध्यादृष्टियों के अवहारकरण से सात सय मा संख्यात गुणा है । सासादन सम्यग्दृष्टि के अवहारकाल से संयतासंयत का अवहारकाल असंख्यातगुरणा है । संयतासंयत के अवहारकाल से संयतासंयत द्रव्य प्रमाण असंख्यात गुणा है । संयतासंयत प्रमाण के ऊपर सासादन सम्यग्दृष्टि का द्रव्य प्रमाण संयतासंयत के द्रव्य से असंख्यातगुणा है ।
गाथा ६२४
शंका- संयतासंयत गुणस्थान का उत्कृष्ट काल संख्यात वर्ष है और मासादन सम्यग्दृष्टि गुगास्थान का उत्कृष्ट काल छह आवली है । अतः इनके उपक्रम काल आदिक ग्रूपने-अपने गुणस्थानकाल के अनुसार होते हैं, इसलिए सासादन सम्यग्दृष्टि के द्रव्यप्रमाण से संयतासंयत द्रव्यप्रमाण संख्यात गुणा होना चाहिए ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं, क्योंकि सम्यक्त्व और चारित्र के विरोधी सासादन गुणस्थान संबन्धी परिणामों से प्रत्येक समय में असंख्यात गुणी श्रेणी रूप से कर्मनिर्जरा के कारणभूत संयमासंयम परिणाम अतिदुर्लभ हैं । यतः प्रत्येक समय में संयमासंयम को प्राप्त होने वाली जोवराशि की अपेक्षा प्रत्येक समय में सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान को प्राप्त होने वाली जीवराशि प्रसंख्यातगुणी है । '
सासादन सम्यग्दृष्टि जीवराणि से सम्यग्मिथ्यादृष्टि द्रव्य का प्रमारण संख्यातगुणा है, क्योंकि सासादन सम्यग्दृष्टि के छह आवली के भीतर होने वाले उपक्रमण काल से सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान का अन्तर्मुहूर्त प्रमाण उपक्रमगा काल संख्यातगुरगा है। गुणाकार संख्यात समय है । सम्यग्मिध्यादृष्टि द्रव्य के ऊपर असंयत सम्यग्दृष्टि का द्रव्य उससे असंख्यात गुणा है, क्योंकि सम्यरिमध्यादृष्टि के उपक्रमण काल से असंख्यात प्रावलियों के भीतर होने वाला असंयत सम्यग्दृष्टि का उपक्रमण काल प्रसंख्यातगुरगा है । अथवा प्रत्येक समय में सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त होने वाली राशि से वेदक सम्यक्त्व को प्राप्त होने वाली राशि प्रसंख्यातगुणी है। तथा जिस कारण से वेदक सम्यग्दष्टि का प्रसंख्यातवाँ भाग मिथ्यात्व को प्राप्त होता है और उसका भी असंख्यातवाँ भाग सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त होता है तथा 'सर्वदा अवस्थित राशियों का व्यय के अनुसार हो प्राय होना चाहिए' इस न्याय के अनुसार मोहनीय के ग्रट्टाईस कर्मों की सत्ता रखने वाले जितने जीव असंयत सम्यग्वष्टि जीवराशि में से निकलकर मिथ्यात्व को प्राप्त होते हैं, उतने ही मिथ्यादृष्टि वेदक सम्यक्त्व को प्राप्त होते हैं, इसलिए सम्यग्मिथ्यादृष्टि के द्रव्य से असंयत सम्यग्वष्टि का द्रव्य असंख्यात गुणा है, यह सिद्ध हो जाता है । यह व्याख्यान यहाँ पर प्रधान है। आवली का असंख्यातवां भाग गुणाकार है ।
शङ्का - ये जीवराशियाँ अवस्थित नहीं हैं, क्योंकि इन राशियों की हानि - वृद्धि होती रहती है। यदि कहा जाय कि इन राशियों की हानि और वृद्धि नहीं होती, सो भी ठीक नहीं है । यदि इन राशियों का आय और व्यय नहीं माना जाय तो मोक्ष का भी प्रभाव हो जायेगा। सासादन आदि गुणस्थानों का काल अनादि पर्यवसित (अनन्त) भी नहीं है, इसलिए भी इन राशियों में हानि और वृद्धि होती है । यदि इन राशियों को अवस्थित माना जाए तो ये भागहार बन सकते हैं, अन्यथा नहीं, क्योंकि अनवस्थित राशियों के भागद्वारों का भी अनवस्थित रूप से ही सद्भाव माना जा सकता है ?
९. धवल पु. ३. ११६-११६ । २. सवल पु. ३ पृ ११६ १२० ।