Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 782
________________ ७४८/गो. सा, जीवकाण्ड गाया ६८६-६६० गायार्थ-अविरत में चार गुणस्थान होते हैं । देशसंयत में पांचयाँ गुणस्थान होता है। परिहारविशुद्धिसंयम में प्रमत्त व अप्रमत्त संयत ये दो गुरास्थान होते हैं । सामायिक व छेदोपस्थापना संयम में छठे मुरास्थान से लेकर बादर साम्पराय नौवें गुणस्थान तक होते हैं॥६८६।। सूक्ष्म साम्पराय संयम में सूक्ष्म कषाय नामक दसवाँ गुरणस्थान होता है। उपशान्त कषाय, क्षीणकषाय तथा सयोगकेवली व अयोगकेवल इन दो जिलों में प्रथा वाद चारित्र होता है अर्थात् यथारूयात चारित्र में उक्त चार गुणस्थान होते हैं । सिद्धों में संयममार्गणा का कोई भेद नहीं होता ।। ६६ ० ।। विशेषार्थ .. सामायिक व छेदोपस्थापना शुद्धि संयम में प्रमत्त संयत से लेकर अनिवृनिकरण गुणस्थान तक होते हैं ।।१२।।' परिहार-शुद्धि-संयत प्रमत्त व अप्रमत्त इन दो गुणस्थानों में होने हैं ।।१२६॥ शंका-ऊपर के प्राट्वें ग्रादि गुरणस्थानों में यह संयम क्यों नहीं होता है ? समाधान - नहीं, क्योंकि जिनकी आत्माएँ ध्यानरूपी अमृत के सागर में निमग्न हैं, जो वचन-यम (मौन) का पालन करते हैं और जिन्होंने आने-जाने रूप व्यापार को संकुचित कर लिया है ऐसे जीवों के शुभाशुभ क्रियाओं का परिहार बन ही नहीं सकता, क्योंकि गमनागमन प्रादि क्रियानों में प्रवृत्ति करने वाला ही परिहार कर सकता है, प्रवृत्ति नहीं करने वाला नहीं। इसलिए ऊपर के पाठवें आदि ध्यान अवस्था को प्राप्त अष्टम आदि गुणस्थानों में परिहार-शुद्धि-संयम नहीं बन सकता है। शंका-परिहार-शुद्धि-संयम क्या एक यम रूप है या पाँच यम रूप है ? यदि एक ग्रम रूप है तो उसका सामायिक में अन्तर्भाव होना चाहिए और यदि पांच यम रूप है तो उसका इछेदोपस्थापना में अन्तर्भाव होना चाहिए । संयम को धारण करने वाले पुरुष के द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक नय की अपेक्षा इन दोनों संयमों से भिन्न तीसरे संयम की सम्भावना तो है नहीं, इसलिए परिहार-शुद्धि-संयम नहीं बन सकता? समाधान-नहीं, क्योंकि परिहार ऋद्धिरूप अतिशय की अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना से परिहार-शुद्धि संयम का कथंचित् भेद हैं । शंका --मामायिक और छेदोपस्थापना अवस्था का त्याग न करते हुए ही परिहार ऋद्धिरूप पर्याय से यह जीव परिगत होता है, इसलिए सामायिक-छेदोपस्थापना से भिन्न यह संयम नहीं हो सकता है। समाधान- नहीं, क्योंकि पहले अविद्यमान परन्तु पीछे से उत्पन्न हुई परिहार ऋद्धि की अपेक्षा उन दोनों संयमों से इसका भेन्द्र है, अतः यह बात निश्चित हो जाती है कि सामायिक और छेदोपस्थापना से परिहार-शुद्धि-संयम भिन्न है । १. "मामाइय-च्छेदो बटुावण-मुद्धि-संजदा पमत्तसं जद-प्पहुडि जाव प्रणिय ष्टि सि ।।१२५।।" [ घ. पु.१ पृ. ३७४ ।। २. "परिहार-सृद्धि-संजदा दासु नागरा, पमत्तसंजाद टाणे अपमत्तमजद-ट्टाणे ।। १२६।।' धबन पृ. १ पृ. ३७५]। ३. पवल पु. १ पृ. ३७५ ।

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