Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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७७८/गो. सा. जीवकाण्ड
मार्गरणा
सम्यक्त्व मार्गा
मिथ्यात्व
सासादन
मिश्र
उपशम सम्यक्त्व
क्षयोपशम सम्यक्त्व
क्षायिक सम्यक्त्व
संज्ञी मार्गणा
अमंजी
संज्ञी
आहार मार्गणा
अनाहारक
श्राहारक
सम्भव गुरणस्थान
( परन्तु प्रा. पं. सं. पू. १०० १०१ के अनुसार १ से १२ गुणस्थान भव्य के )
पहला गुणैस्थान
दूसरा
तीसरा
४ से ११
४ से ७
४ से १४
१ प्रथम
१ से १२
१. २, ४, १३ व १४
१ से १३
सम्भव श्रालाप
आलाप त्रय ।
आलाप अथ ।
पर्याप्त आलाप |
I
आलापत्रय चौथे में द्वितीयोपशम की अपेक्षा प्रथमो में पर्याप्त श्रालाप | शेष में पर्याप्त भालाप
21
चौथे व छठे में प्रालाग त्रय । शेष में पर्याप्त
आलाप
४, ६, १३ में श्रालाप त्रय। शेष में पर्याप्त श्रा
आलाप त्रय ।
४, ६ में आलाप त्रय। शेष में पर्याप्त बालाए ।
१. २,
४. १३ में एक अपर्याप्त बालाप | १४ वे में पर्याप्त श्रालाप'
गाथा ७२५
१, २, ४, ६, १३ में श्रालाप श्रय । शेष में पर्याप्त बालाप |
इस प्रकार वेद से आहार मार्गणा तक आलाप कह कर आगे २० प्ररूपणा को श्रांधादेश में निरूपणार्थं कहते हैं ।
गुजीवापज्जत्ती, पारणा सन्ता गइंदिया काया ।
जोगा वेदकसाया, खारगजमा दंसणा लेस्सा ।।७२५ ॥
१ कि हमे यिमा || इति वचनादयोगिनि एकः पर्याप्त एवालाप: ।