Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गामा ६८६-६६०
अन्तर्भाव / ७४६
शङ्का - परिहारऋद्धि की धागे के आठवें यादि गुणस्थानों में भी सत्ता पाई जाती है, अतएव हाँ पर इस संयम का सद्भाव मान लेना चाहिए ?
समाधान नहीं, यद्यपि आठवें आदि गुणस्थानों में परिहार ऋद्धि पाई जानी है, परन्तु वहाँ पर परिहार करने रूप उसका कार्य नहीं पाया जाता, इसलिए आठवें आदि गुणस्थानों में परिहारशुद्धि संयम का प्रभाव कहा पर है।
सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयम में एक सूक्ष्ममाम्पराय शुद्धिसंयत गुणस्थान ही होता है ।। १२७ ।। २
शङ्का – सूक्ष्मसाम्परायसंयम क्या एक यमरूप है अथवा पाँच यमरूप है ? इनमें से यदि एक यमरूप है तो पंत्रयम रूप छेदोपस्थापना संयम से मुक्ति अथवा उपशमश्रेणी का आरोहण नहीं बन सकता, क्योंकि सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान की प्राप्ति के बिना मुक्ति की प्राप्ति और उपशमश्रेणी का आरोहण नहीं बन सकेगा ? यदि सुक्ष्मसाम्पराय पाँच यमरूप है तो एक यमरूप सामायिक संयम को धारण करनेवाले जीवों के पूर्वोक्त दोनों दोष प्राप्त होते हैं ? यदि सूक्ष्मसाम्पराय को उभययमरूप मानते हैं तो एक यम और पाँच यम के भेद से सूक्ष्मसाम्पराय के दो भेद हो जाते हैं ?
समाधान आदि के दो विकल्प तो ठीक नहीं हैं, क्योंकि वैसा हमने माना नहीं है । इसी प्रकार तीसरे विकल्प में दिया गया दोष भी सम्भव नहीं है, क्योंकि पंच यम और एक यम के भेद से संगम में कोई भेद ही सम्भव नहीं है । यदि एक यम और पंच-यम संयम के न्यूनाधिक भाव के कारण होते तो संयम में भेद भी हो जाता । परन्तु ऐसा तो है नहीं, क्योंकि संयम के प्रति दोनों में कोई विशेषता नहीं है। अतः सूक्ष्मसाम्पराय के उन दोनों की अपेक्षा दो भेद नहीं हो जाते हैं ।
शङ्का -- जबकि उन दोनों की अपेक्षा संग्रम के दो भेद नहीं हो सकते हैं तो पांच प्रकार के संयम का उपदेश कैसे बन सकता है ?
समाधान-यदि पाँच प्रकार का संयम घटित नहीं होता है तो मत होमो |
शङ्का - तो संयम कितने प्रकार का है ?
समाधान संयम चार प्रकार का है, क्योंकि पाँचवाँ संगम पाया ही नहीं जाता । ३ क्षीणकषाय- वीतराग छद्मस्थ,
यथाख्यात शुद्धि-संगत में उपशान्तकपाय वीतराग छद्यस्थ रायोगिकेवली और अयोगिकेवली ये चार गुणस्थान होते हैं ।। १२८
संवतासंयत नामक संयम में एकदेशविरत ग्रर्थात् संयमासंयम गुमास्थान होता है ।। १२६
१. धवल पु. १ पृ. ३७६ २. "हुम सांवराइय- सुद्धि-संजदा एक्कम्मि चैव सुम-सराय-सुद्धि-संजद-दाणे ।।१२।।" [घवल पु. १ प्र. ३७६ । । ३. घवल पु. १ पृ. ३७६-३७७ । ४. "जाबाद- विहार सुद्धि मंजदा चदुमुदाणे ज्वसंत कापीमा खीगुरुमाय- वीयराय-मत्था सजोगिकेवली अजांगिकेवली ति ।। १२६ ।। " [ धवल पु. १ पृ. २७३ ।। ५. "सजदा सजदा एककम्मिचेय संजदासंजद द्वारणे ।। १२६ ।। " [ धवल पु. १ पृ. ३७८ ] ।