Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ७०६-७०७
होते हैं - चक्षु, प्रचक्षु, अवधि व केवल ' इस प्रकार कुल १२ उपयोगों में से कितने कहाँ होते हैं। यह बताया जाता है। आदि के दो गुणस्थानों में, आदि के तीन ज्ञान ( मिथ्या) व दो दर्शन ये पाँच उपयोग होते हैं । चौथे व पांचवें गुणस्थान में मति श्रुत, अवधिज्ञान, चक्षु, प्रचक्षु व अवधि दर्शन ये छह उपयोग होते हैं। मिश्र नामक तीसरे गुणस्थान में ये छहों मिश्र रूप होते हैं। छठे से १२वें तक के सात गुणस्थानों में मन:पर्यय ज्ञानोपयोग सहित सात उपयोग होते हैं । सयोगी, प्रयोगी तथा सिद्धों के केवलज्ञान व केवलदर्शन, ये दो ही उपयोग होते हैं ।
इस प्रकार गोम्मटसार जीवकाण्ड में अन्तर्भाव प्ररूपणा नामक इक्कीसवाँ अधिकार पूर्ण श्रा ।
२२. श्रालापाधिकार
प्रतिज्ञा
गोयमथेरं परमिय, श्रोधादेसेसु बीसभेदाणं । जोजरिणकारणालावं, वोच्छामि जहाकमं सुरगह् ॥१७०६ ।।
गाथार्थ - गौतम स्थविर को प्रणाम करके गुणस्थान और मार्गणास्थानों में, पूर्व में योजित २० प्रकारों के आलाप को ययाक्रम कहूंगा,
उसे सुनो।
प्रोघे चोसठाणे, सिद्ध बोसदिविहारण मालावा । वेदकसायविभिण्णे श्रयिट्ठी पंचभागे य
॥७०७॥
गाथार्थ -- प्रसिद्ध गुणस्थानों में और १४ मार्गणास्थानों में बीस प्ररूपणा के श्रालाप सामान्य, पर्याप्त व अपर्याप्त होते है । एवं वेदों व कषायों से भेद को सम्प्राप्त अनिवृत्तिकरण नामा नौ गुणस्थान के पांच भागों में भी आलाप भिन्न-भिन्न होते हैं ।
विशेषार्थ - बीस प्ररूपणाएँ निम्नलिखित हैं--- १ गुगास्थान,
१ जीवसमास १ पर्याप्ति १ प्राण, १ संज्ञी, १४ मार्गणा व उपयोग ऐसे (१+१+१+१+१+१४+ १ = २० ) प्ररूपण हैं |
शङ्का - प्ररूपणा किसे कहते हैं ?
१. गो. जी. ६७३ पंचास्तिकाय मूल ४१-४२. ध. २/४१६ ० १/४ /७३ पृ. १०२-१०३ । ३. व. २/१, पी. जी. गाथा २ ।
२. प्रा. पं. सं.
दर्शन (३+२)
± + 2) (t + 2) | (t - 2) ( - ) (e - t ) ; ( + 1) (1+ )
| (x+3)(x+3)(x+3)(x+3);({ 1-?), (?-?)
क्रमश
ज्ञान
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गुणस्थानों में उपयोग का नक्शा
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ग्रनि
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