Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ७१७
पालाप/७५३
गाथार्य-समस्त देवों के मव (चार) गुणस्थानों में से मिथ्यात्वहिक व अविरत में तीनों ही पालाप होते हैं। इतनी विशेषता है कि भवनत्रिक व कल्पवासिनी देवियों के अविरत गुणस्थान में एक पर्याप्त पालाप ही होता है ।।१७।।
विशेषार्थ --समस्त देवों में कुल ४ ही गुणस्थान सम्भव हैं। उसमें से प्रथम, द्वितीय व चतुर्थ गुणस्थान में तीनों पालाप होते हैं क्योंकि इन गुणस्थानों के साथ देवों में जन्म तथा अपर्याप्त अवस्था में भी मिथ्यात्व, सासादन व असंयत सम्यक्त्व गुणस्थान देखा जाता है। यानी देव मिथ्याष्टि, मामादन सम्यग्दृष्टि व असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में पर्याप्त भी होते हैं और अपर्याप्त भी । सकल देव मिश्र गुणस्थान में नियम से पर्याप्त ही होते हैं। अतः इस तृतीय गुणास्थान में एक पर्याप्त पालाप ही होता है।
शंका - 'देव तृतीय गुणस्थान मे नियम से पर्याप्त हैं।' यह कैसे ?
समाधान-क्योंकि तृतीय गुणस्थान के साथ उनका मरण नहीं होता है तथा अपर्याप्त काल में भी मभ्यरिमथ्यास्त्र गुणस्थान की उत्पत्ति नहीं होती है।'
शंका---'तृतीय गुणस्थान में पर्याप्त ही होते हैं। इस प्रकार के नियम के स्वीकार कर लेने पर तो एकान्तवाद प्राप्त होता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि अनेकान्तगभित एकान्त के सद्भाव होने में कोई विरोध नहीं पाता है।
भवनवासी, बानव्यन्तर और ज्योतिषी देव और उनकी देवियों तथा सौधर्म और ऐशानकरपबासिनी देवियों, वे सब मिथ्याष्टि और मासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में पर्याप्त भी और अपर्याप्त भी होते हैं, क्योंकि इन दोनों गुणों से युक्त जीवों की उपयुक्त देव व देवियों में उत्पत्ति देखी जाती है, पर विशेष इतना है कि सम्यग्मिथ्यात्व ब अविरत सम्यक्त्व गुणस्थान में उपयुक्त देवदेवी नियम से पर्याप्त होते हैं क्योंकि, गम्यक्त्वी मरकर उनमें जन्म नहीं लेता । अतः भवनत्रिक में और कल्पवासी देवांगनायों में असंयत गुणस्थान में पर्याप्त पालाप ही होता है ।'
शंका-मिश्रगुणस्थान बाले जीव की उपयुक्त देवदेवियों में उत्पत्ति मत होयो, यह ठीक है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यादष्टि गुगास्थान के साथ जीव का मरण नहीं होता है । परन्तु यह बात नहीं बनती है कि असंयत मम्यग्दृष्टि जीव उक्त देव और देवियों में उत्पन्न नहीं होता है ।
समाधान --नहीं, क्योंकि. मम्यष्टि की जघन्य देवों में उत्पत्ति नहीं होती है।
मजा...- जघन्य अवस्था को प्राप्त नारकियों में और नियंचों में उत्पन्न होने वाला मम्यग्दृष्टि जीव उनमे उत्कृष्ट अवस्था को प्राप्त भवनवासी देव और देवियों में तथा कलावासिनी देवियों में
१.पद खं. १/२८, ध.१/२२६ २. षट् बं. १/6; प. १/३३६ । ३. पट खं.१/९५४. धवल १/३३७, पवन ६/४५१, ४६३.४६४ ५, धवल १/३३७। ६. ष. नं. १/६७ | ७. श्र.१/३३६, ५.१/२१० प्रा. पं. म १/१६३/४१ ८. ध. २/५६३ ६. धवल पू. १/३३८ *मो. जी. २४ घ. ५/३१; ४३४६ ।