Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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७२२/गो, सा, जीवकाण्ड
गाथा ६६३
समाधान---यह बात नहीं है, क्योंकि एकेन्द्रियादिक के मन नहीं पाया जाता। अथवा जो शिक्षा, क्रिया, उपदेमा और पालाप को ग्रहण करता है, वह संज्ञी है।'
हित की विधि और अहित के निषेध रूप शिक्षा होती है । दूसरों की क्रिया को देखकर शिक्षा ग्रहण करना अथवा उस रूप कार्य करना क्रिया है। उपदेश के द्वारा शिक्षा ग्रहण करना और क्रिया करना सो उपदेश है । नाम लेकर पुकारने पर आजाना सो पालाप है, अथवा श्लोक आदि का पाठ उच्चारण करना पालाप है ।
शङ्का-मन सहित होने के कारण सयोगकेबली भी संज्ञी होते हैं ?
समाधान नहीं, क्योंकि प्रावरण कर्म से रहित उनके मन के अवलम्बन से बाह्य अर्थ का ग्रहण नहीं पाया जाता, इसलिए उन्हें संजी नहीं कह सकते ।
शंका-तो केवली असंज्ञी रहे प्रावे ?
समाधान नहीं, क्योंकि जिन्होंने समस्त पदार्थो को साक्षात कर लिया है, उन्हें असंजी मानने में विरोध आता है।
संजीन प्रमंज्ञी जीवों की संख्या देवेहि सादिरेगो रासी सण्णोण होदि परिमाणं ।
तेणगो संसारी सम्वेसिमसपिराजीवाणं ॥६६३।। ___गाथार्थ-देवों के प्रमाण से कुछ अधिक संजी जीवों का प्रमाण है । संसारी जीवाशि में से संशी जीवों के प्रमाण को घटा देने पर सर्व असंज्ञी जीवों की संख्या प्राप्त हो जाती है ।। ६६३।।
विशेषार्थ-संजी जीवों में प्रधान देव ही हैं, क्योंकि शेष तीन गति के संज्ञी जीव देवों के संख्यातवें भाग प्रभागा हैं। इसीलिए संजी जीव देवों से कुछ अधिक हैं, ऐसा कहा गया
शङ्का-देव कितने हैं ?
समाधान–प्रसंख्यात हैं। दो सौ छप्पन सुच्यंगल के वर्गरूप से जगत्प्रतर में भाग देने पर देवों का प्रमाण प्राप्त होता है ।
शङ्का-संजी जीव देवों से कितने अधिक हैं ?
समाधान-असंख्यात अधिक देवराशि प्रमाण संज्ञी जीव हैं । अथवा संजी जीव देवों के संख्यातवें भाग अधिक देवराशि प्रमाण हैं । देव अवहारकाल दोसौं छप्पन सूच्यंगुल का वर्ग अर्थात्
४. धवल पु. ३. पृ. ३८६ ।
१-२. घबल पु. १. १५२ व टिप्पण नं. २ । ३. अवन . १. पृ. ४०८। ५. धबल पु. ३ पृ. ४८२ । ६. धवल पु. ३ पृ २६८-२६६ ।।