Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
७२४/गो. सा. जीवकाण्ड
माथा ६६६
औदारिक आदि तीन शरीरों का निर्माण कहा गया है तथापि विशेष विवक्षा में तीनों शरीरों की वर्गणाएँ भिन्न-भिन्न हैं। जिन याहारवर्गणात्रों से औदारिक शरीर का निर्माण होता है, उनसे वैक्रियिक और आहारक शरीर का निर्माण नहीं होता। जिन आहारवर्गणाओं से वैक्रियिक शरीर का निर्माण होता है, उनसे औदारिक और प्राहारक पारीर का निर्माण नहीं होता। जिन आहार वर्गणाओं से आहारक शरीर का निर्माण होता है उनसे औदारिक व वैक्रियिक शरीर का निर्माग नहीं होता। क्योंकि औदारिक ग्रादि तीन शरीरों का निर्माण करने वाली प्राहार वर्गणा पथकपृथक हैं। किन्तु उन तीन प्रकार की वर्गणाओं के अग्राह्य वर्गणा के द्वारा व्यवधान नहीं होने से उनकी एक बर्गरणा मानी गई है।'
शंका -कवलाहार आदि में से किस आहार के ग्रहण से जीव आहारक होता है ?
समाधान–याहार मार्गणा में 'पाहार' शब्द से कवलाहार, लेपाहार, ऊमाहार, मानसिकाहार और कहिार को छोड़कर नोकर्माहार का ही ग्रहण करना चाहिए ।
शङ्खा–नोकर्माहार वर्गणा का क्यों ग्रहगा करना चाहिए ?
समाधान--यदि कवलाहार आदि को ग्रहण किया जाए तो ग्राहार काल (आहारक काल) और बिरह (अन्तर) के साथ विरोध पाता है। नोकर्मवर्गणा का निरन्तर ग्रहण होता है, किन्तु कबलाहार प्रादि का निरन्तर ग्रहण नहीं होता ।*
शंका-याहारमार्गणानुसार जीव याहारक कैसे होता है ?
समाधान–ग्रौदारिक, वैक्रियिक व आहारक शरीर नामकर्म प्रकृतियों के उदय से जीब आहारक होता है।
शङ्खा-तेजस व कामण शरीर के उदय से जीव ग्राहारक क्यों नहीं होता?
समाधान नहीं होता, क्योंकि वैसा माननेपर विग्रह गति में भी जीव के ग्राहारक होने का प्रसंग आजायेगा और बसा है नहीं, क्योंकि विग्रह गति में जीव अनाहारक होता है ।'
प्राहारक व अनाहार क जीवों का कथन विग्गहगदिमावण्णा केवलियो समुग्घदो अजोगी य ।
सिद्धा य प्रणाहारा सेसा आहारया जीवा ।।६६६।।* गाथार्थ--विग्रह गति को प्राप्त, केवली समृद्घात को प्राप्त, अयोगिकेवली तथा सिद्ध भगवान अनाहारक हैं, शेष जीव ग्राहारक हैं ।।६६६।।
३. धवल पु. ७
१. धवल. पु. १४ पृ. ५४६-४५३ । २. धवल. पु. १५४०६ मूत्र १७६ की टीका । पृ. ११३३४. धवल पु. १ पृ. १५३ गा. ६६; प्रा. पं. सं. पृ. ३७ गा. १७७ ।