Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ६६४-६६४
आहारमार्गणा / ७२३
६५५३६ प्रतरांगुल में एक प्रतरांगुल को ग्रहण करके और संख्यात खंड करके उनमें से एक खंड को निकालकर शेष बहुखंड उसी में मिला देने पर संज्ञी जीवों का अवहार काल होता है । इसका जगत्तर में भाग देने पर संशी जीवों का प्रमाण प्राप्त होता है ।"
सम्पूर्ण संसारी जीव शेष अनन्त प्रसंज्ञीजीवराशि का द्वारा अपहृत नहीं होते हैं ।
अनन्त हैं। उनमें से संज्ञी जीवों की संख्या असंख्यात कम कर देने पर प्रमाण रहता है जो अनन्तानन्त श्रवसर्पिणियों और उत्सर्पिरिगयों के
इस प्रकार गोम्मटमार जीवकाण्ड में संशी भागंरगा नामक मठारहवाँ अधिकार पूर्ण हुम्रा |
१६. श्राहारमार्गणाधिकार
आहारक का स्वरूप
तद्देहवयणचित्ताणं ।
उदयावणसरी रोवयेण खोकम्मरगरगाणं गहणं आहारयं गाम ।। ६६४ ।। आहदि सरोराणं तिष्हं एयदरवग्गणाश्रो य । भासमरणार रिणयदं तम्हा श्राहारयो भरियो ।। ६६५ ।। ३
गाथार्थ शरीर नामकर्मोदय को प्राप्त जीव शरीर वचन मन के योग्य वर्गरणाओं को ग्रहण करता है, वह श्राहारक है ।। ६६४ । । औदारिक, वैकिमिक और आहारक इन तीन शरीरों में से किसी एक शरीर के योग्य वर्गणा को तथा भाषा व मन वर्गणाओं को जो जीव नियम से ग्रहण करता है वह आहारक कहा गया है ।। ६६५ ।।
विशेषार्थ-तीन शरीर और छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गलों के ग्रहण करने को बाहार कहते हैं । * श्रदारिकादि शरीर के योग्य पुद्गल पिण्ड के बाहर अर्थात् ग्रहण करने को आहार कहते हैं ।" आहार वर्गणा से तीन शरीर (मोदारिक, वैऋियिक और ग्राहारक शरीर) बनते हैं ।
शङ्का - जिन वर्गणाओं से आहारक शरीर का निर्माण होता है, क्या उन्हीं वर्गणात्रों से श्रदारिक शरीर और वैऋिथिक शरीर का निर्माण होता है ? यदि नहीं तो यह कहना कि आहार वर्गणा से तीन शरीर बनते हैं, कैसे घटित होता है ?
समाधान- ऐसा कहना ठीक नहीं है। यद्यपि सामान्य रूप से ग्राहार वर्गणा के द्वारा
१. धवल पु. पू. ४५२ । २. धवल पु. ३ पृ. ४८३ । ३. बबल पु. १ पृ. १५२ गा. ६८ प्रा. पं. सं. पृ. २७ गा. १७६ । ४. " त्रयाणां शरीराणां वण्णां पर्याप्तीनां योग्यपुद्गलग्रहगामाहारः 1 [स.सि. २/३०]
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५. शरीरप्रायोग्य पुद्गल पिण्डग्रहणमाहारः ।" [ब. पु. १ पृ. १५२, पु. ७ पृ. ७ ] ।
६. गो. जी. गा. ६०७ ।