Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 779
________________ गाथा ६६७-६८८ अन्तर्भाव / ७४५ शङ्का - देव और नारकियों के विभागज्ञान भवप्रत्यय होता है। वह अपर्याप्त काल में भी हो सकता है, क्योंकि पर्याप्त काम में भी विज्ञान के भरतपुर की पाई जाती है ? समाधान- नहीं, क्योंकि 'सामान्य विषय का बोध कराने वाला वाक्य विशेषों में रहा करता है।' इस वाक्य के अनुसार अपर्याप्त अवस्था से युक्त देव और नारक पर्याय त्रिभंग ज्ञान का कारण नहीं है । किन्तु पर्याप्त अवस्था से युक्त ही देव और नारक पर्याय विभंग ज्ञान का कारण है, इसलिए अपर्याप्त काल में विभंग ज्ञान नहीं होता है । ' ग्राभिनिवोधिक (मति ) ज्ञान श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये तीनों संयत सम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणकषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान तक नौ गुगास्थानों में होते हैं ॥ १२० ॥ २ शंका- देव और नारकी सम्बन्धी असंयत सम्यग्दष्टि जीवों में अवधिज्ञान का सद्भाव भले हो रहा आवे, क्योंकि उनके अवधिज्ञान भवनिमित्तक होता है। उसी प्रकार देशविरति यादि ऊपर के गुणस्थानों में भी अवधिज्ञान रहा यावे, क्योंकि अवधिज्ञान की उत्पत्ति के कारणभूत गुणों का वहाँ पर सद्भाव पाया जाता है । परन्तु असंयत सम्यग्दृष्टि तिर्यत्र और मनुष्यों में उसका सद्भाव नहीं पाया जा सकता है, क्योंकि अवधिज्ञान की उत्पत्ति के काररणभृत भव और गुण असंयत सम्यग्दृष्टि तिर्यंच और मनुष्यों में नहीं पाये जाते हैं ? समाधान- नहीं, क्योंकि प्रवधिज्ञान की उत्पत्ति के कारणरूप सम्यग्दर्शन का असंयत सम्यग्दृष्टि तिर्यंच और मनुष्यों में सद्भाव पाया जाता है। शंका- चूंकि सम्पूर्ण सम्यग्दृष्टियों में अवधिज्ञान की अनुत्पत्ति अन्यथा बन नहीं सकती, इससे ज्ञात होता है कि सम्यग्दर्शन अवधिज्ञान की उत्पत्ति का कारण नहीं है ? प्रतिशंका - यदि ऐसा है तो सम्पूर्ण संयतों में अवधिज्ञान की अनुत्पत्ति अन्यथा बन नहीं सकती, इसलिए संयम भी अवधिज्ञान का कारण नहीं है ? प्रतिशंका का उत्तर - विशिष्ट संयम ही अवधिज्ञान की उत्पत्तिका कारण है, इसलिए समस्त संयतों के अवधिज्ञान नहीं होता है, किन्तु कुछ के ही होता है । शंका का समाधान - यदि ऐसा है तो यहाँ पर भी ऐसा ही मान लेना चाहिए कि असंयत सम्यग्दृष्टि तिर्यक और मनुष्यों में भी विशिष्ट सम्यक्त्व ही अवधिज्ञान की उत्पत्ति का कारण है । इसलिए सभी सम्यग्दृष्टि तिच और मनुष्यों में अवधिज्ञान नहीं होता, किन्तु कुछ के ही होता है । शङ्का - औपमिक, क्षायिक र क्षायोपशमिक इन तीनों ही प्रकार के विशेष सम्यग्दर्शन में अवधिज्ञान की उत्पत्ति में व्यभिचार देखा जाता है। इसलिए सम्यग्दर्शन विशेष प्रवधिज्ञान की उत्पत्ति का कारण है, यह नहीं कहा जा सकता है । * १. धवल पु १. पृ.३६२-३६३ । २. "प्राभिरियाण सुदखाणं ओहियागमसंजदसम्माइट्रियम्पदृष्टि जाय खी एका वीर गछदुमत्या ति ॥१२०॥ [ धवल पु. १ पृ. ३६४ ] । ३. धवल पु. १ पृ. ३६५ | ४. धवल पु. १ पृ. ३६५ ।

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