Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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७४४/गो. मा. जीवकाण्ड
गाथा ६८७-६८५
है । केवलज्ञान जिनेन्द्र और सिद्ध भगवान के होता है ॥६८८।।
विशेषार्थ - स्थावर काय अर्थात् एकेन्द्रिय जीवों के एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही होता है अत: स्थावरकाय या एकेन्द्रिय के द्वारा मिथ्यात्व गुण स्थान का ग्रहण होता है । इस प्रकार मत्यज्ञान व श्रुताज्ञान में मिथ्यात्व व सासादन दो ही गुणस्थान होते हैं । विभंग ज्ञान में भी दो ही गुरास्थान मिथ्यात्व और सासादन होते हैं । तथापि विभंग ज्ञान असंज्ञियों में नहीं होता, इस बात का ज्ञान कराने के लिए गाथा में संज्ञी पर्याप्त शब्द दिया गया है। इसके द्वारा प्रसज्ञी और अपर्याप्नकों का निषेध हो जाता है।
शङ्का-मिथ्याइष्टि जीव के भले ही मति-श्रुत दोनों प्रज्ञान होवें, क्योंकि वहाँ पर मिथ्यात्व कर्म का उदय पाया जाता है, परन्तु सासादन में मिथ्यात्व का उदय नहीं पाया जाता, इसलिए वहाँ पर वे दोनों ज्ञान अज्ञान रूप नहीं होने चाहिए?
___ समाधान नहीं, क्योंकि विपरीत अभिनिवेश को मिथ्यात्व कहते हैं और वह मिथ्यात्व व अनन्नानुबन्धी इन दोनों के निमित्त से उत्पन्न होता है। सासादन वाले के अनन्तानुबन्धी का उदय तो पाया ही जाता है, इसलिए वहाँ पर भी दोनों प्रज्ञान सम्भव हैं।
का -एकेन्द्रियों प्रति रमाबरों के शतज्ञान कैसे हो सकता है ? क्योंकि श्रोत्रइन्द्रिय का अभाव होने से शब्द के विषयभूत वाच्य का भी ज्ञान नहीं हो सकता है। इसलिए उनके श्रुतज्ञान नहीं होता है ।
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि यह कोई एकान्त नहीं है कि शब्द के निमित्त से होने वाले पदार्थ के ज्ञान को ही श्रुतज्ञान कहते हैं। किन्तु शब्द से भिन्न रूपादिक लिंग से भी जो लिंगी का ज्ञान होता है, उसे भी श्रुतज्ञान कहते हैं।
शङ्का-मनरहित जीवों के ऐसा श्रुतज्ञान भी कैसे सम्भन है ?
समाधान नहीं, क्योंकि मन के बिना वनस्पतिकायिक जीवों के हित में प्रवृत्ति और अहित से निवृत्ति देखी जाती है, इसलिए गनमाहित जीवों के ही श्रुतज्ञान मानने में उनसे अनेकान्त दोष प्राता है।'
शङ्खा–विकलेन्द्रिय जीवों के विभंगज्ञान क्यों नहीं होता है ? समाधान नहीं, क्योंकि वहाँ पर विभंगज्ञान का कारणभूत क्षयोपशम नहीं होता। शंका वह क्षयोपशम भी विकलेन्द्रियों में क्यों सम्भव नहीं है ?
समाधान - नहीं, बयोंकि अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम भवप्रत्यय और गुणप्रत्यय होता है । परन्तु विकलेन्द्रियों में ये दोनों प्रकार के कारण नहीं पाये जाते हैं, इसलिए उनके विभंगज्ञान सम्भव नहीं है।
१. धवल पु. १.३६१ ।