Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
७३४ गो. सा. जीवकाण्ड
खाया ६७२-६७५
वे मात्र ६०८ हैं और कार्मणकाययोगी जीव अनन्त हैं। अत: संसारी जीवराशि अनन्त में असंख्यात समय प्रमाण अन्तमहतं का भाग देने पर लब्ध प्रमन्त प्राप्त होता है। इस अनन्त को संसारी जीवराशि में से घटाने पर प्राहारक जीवों की संख्या प्राप्त होती है। अथवा सर्व संसारी जीवों के असंख्यात खंड करने पर एक खण्ड प्रमाण अनाहारक है और बहु भाग पाहारक जीव हैं।' अनाहारक से ग्राहारक जीव असंख्यात गुणे हैं, गुणाकार अन्तर्मुहूर्त है ।।
इस प्रकार गोम्मटसार जीवकाराष्ट्र में प्राहार मार्गणा नामक उन्नीमा अधिकार पूर्ण हुग्रा ।
२०. उपयोगाधिकार
साकार व प्रनाकार उपयोग वत्थुरिणमित्तं भावो जावो जीवस्स जो दु उवजोगो । सो दुविहो पायध्यो सायारो चेव गायारो ॥६७२।। गाणं पंचविहंपि य अण्णारतियं च सागरवजोगो । चदुदंसरगमरणगारो सध्ने तल्लक्खरणा जीवा ।।६७३॥ मविसुदोहिमणेहिय सगसगविसये बिसेसविण्णाणं । अंतोमुत्तकालो उबजोगो सो दु सायारो ॥६७४।।' इंदियमरणोहिणा वा प्रत्थे अबिसेसिदण जं गहणं । अंतोमुत्तकालो उवजोगो सो प्रणायारो ॥६७५॥
गाथार्थ .. वस्तु (ज्ञेय) को ग्रहण करने के लिए जीव का जो भाव होता है, वह उपयोग है। वह उपयोग साकार और अनाकार के भेद से दो प्रकार का है ।।६७२।। पाँच प्रकार का ज्ञान और तीन प्रकार का अज्ञान ये साकार उपयोग हैं। चार प्रकार का दर्शन अनाकार उपयोग है। ये सब जीव के लक्षण हैं, अर्थात् पाठ प्रकार का साकार उपयोग और चार प्रकार का अनाकार उपयोग जीव का लक्षण है ।।६७३।। अन्तम हुर्त काल तक मति, श्रुत, अवधि, और मनःपर्यय ज्ञान अपनेअपने विषय को विशेष रूप से ग्रहण करता है, वह साकार उपयोग है ।।६७४।। इन्द्रिय, मन और अवधि के द्वारा अनि शेष रूप पदार्थ का जो ग्रहण है, वह अनाकार उपयोग है, उसका काल भी अन्तर्मुहर्न है ॥६७५।।
विशेषार्थ-जीव का लक्षण उपयोग है। जो अन्तरंग और बहिरंग दोनों प्रकार के निमितों
३. प्रा. पं. सं. पृ. ३७ गा. १७६ ।
१. धवल पु. ३ पृ. ४६५। ४. प्रा. पं. सं. पृ. ३८ गा. १७१।
२. धवल पृ.७ पृ. ५५४ ५. प्रा. पं. सं.प्र. ३८ गा. १६० ।।