Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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७२/पो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ६६७-६६८
समाधान-वेदना समुद्घात और कषाय समुद्घात का मारणान्तिक समुवात में अन्तर्भाव नहीं होता है क्योंकि जिन्होंने परभव की आयु बाँध ली है, ऐसे जीवों के ही मारणान्तिक समुद्धात होता है । किन्तु वेदना और कषाय समुद्रात बद्धायुष्क जीवों के भी होना है और प्रबद्धायुष्क जीवों के भी होता है। मारणान्तिक समुद्घात निश्चय से जहाँ उत्पन्न होना है, ऐसे क्षेत्र की दिशा के अभिमुख होता है। किन्तु अन्य समुद्घातों इस प्रकार एक दिशा में गमन का नियम नहीं है क्योंकि उनका दसों दिशाओं में भी गमन पाया जाता है । मारणान्तिक समुद्घात की लम्बाई उत्कृष्टतः अपने उत्पद्यमान क्षेत्रों के अन्त तक है, किन्तु इतर समुद्घातों का यह नियम नहीं है।'
५. तेजस समुद्घात (अशुभ): अपने मन को अनिष्ट उत्पन्न करने वाले किसी कारण को देख कर क्रोधित, संयम के निधान महामुनि के बाएँ कन्धं से सिन्दूर के ढेर जैसी कान्ति बाला, चारह योजन लम्बा, सूच्यंगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण मूल विस्तार और नौ योजन के अग्रविस्तार वाला , काहल (बिलाव) के आकार का धारक पुरुष (पुतला) निकल करके बायीं प्रदक्षिणा देकर, मुनि जिस पर क्रोधी हो, उस विरुद्ध पदार्थ को भस्म करके और उसी मुनि के माथ आप भी भरम हो जाचे । जैसे द्वीपायन मुनि के शरीर से पुतला निकल कर द्वारिकानगरी को भस्म करने के बाद उसी ने द्वीपायन मुनि को भस्म किया और वह पुनला आप भी भस्म हो गया। यह अशुभ तंजस समुद्घात है।
तैजस समुद्धात (शुभ): जगत को रोग, दुर्भिक्षादि से दुःखित देखकर जिसको दया उत्पन्न हुई, ऐसे परम संयमनिधान महा-ऋषि के मूल शरीर को न त्याग कर पूर्वोक्त देह के प्रमाण, सौम्य प्राकृति का धारक पुरुष दाएँ कन्धे से निकल कर दक्षिण प्रदक्षिणा करके रोग, दुर्भिक्ष प्रादि को दूर कर फिर अपने स्थान में प्राकर प्रवेश कर जान्ने वह शुभ तेजस समुद्घात है।
६. प्राहारक समुद्घात -पद या पदार्थ में शंका उत्पन्न होने पर परम ऋद्धि से सम्पन्न महाऋषि के मूल शरीर को न छोड़ते हुए मस्तक के मध्य से एक हाथ प्रमाण शुद्ध स्फटिक जैसी प्राकृति वाले पुतले का निकल कर जहां पर केवलज्ञानी है वहाँ पर जाकर दर्शन करके मुनि की शंका का निवारण करके अपने स्थान पर लौट कर मूल शरीर में प्रवेश कर जाता है । यह आहारक समुद्घात
७. केवलो समुधात–दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण केवली ममुद्धात हैं।'
पढमे बंद्धं कुणइ य विदिए य कवाइयं तहा समए । तइए पयरं चेव य चउत्थाए लोय-पूरणयं ॥१८६॥' विवरे पंचमसमए ओई मंथारण्यं तदो छ?। सत्तमए य कवार्ड संवरइ तदोऽटुमे दंडं ॥१७॥ दंडबुगे अोराल कवाइजुगले य पयरसंवरणे ।
मिस्सोरालं भरिणयं कम्मइनो सेस तत्थ प्रणहारो ॥१८॥ –समुद्घातगत केवली भगवान् प्रथम समय में दडरूप समुद्घात करते हैं । द्वितीय समय - - - १. चबल पु. ४ पृ. २७ । २. स्वा. का. अ. गाथा १७६ की टीका । ३. प्रा. पं. सं. पृ. ४११ ४. व ५. प्रा.पं. सं. पृ. ४२ ।