Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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७३०/गो, सा. जीवकाश
गाथा ६६.७-६६८
समाधान - द्वादशांग का ज्ञान, उनमें तीव्र भक्ति, केलिसमुद्घात और अनिवृत्तिरूप परिणाम ये सब संसार के विच्छेद के कारण हैं। परन्तु ये सब कारण समस्त जीवों में संभव नहीं है, क्योंकि दशपूर्व और नौपूर्व धारी जीवों का भी क्षपक श्रेणी पर चढ़ना देखा जाता है। अत: वहाँ पर संसार व्यक्ति के समान कर्मस्थिति नहीं पाई जाती है। इस प्रकार अन्तमुहर्त में नियम से नाश को प्राप्त होने वाले पल्योपम के असंख्यातवें भाग आयाम वाले या संख्यात पावली आयाम के स्थितिकाण्डकों का विनाश करते हुए कितने ही जीव समुद्घात के बिना ही प्रायु के समान शेष कर्मों को कर लेते हैं। तथा कितने ही जीव समुद्घात के द्वारा शोष कर्मों को प्रायु कम के समान करते हैं। परन्तु यह संसार का धात केवली में पहले सम्भव नहीं है। क्योंकि पहले स्थितिकारक के घात के समान सभी जीवों के समान परिणाम पाये जाते हैं।
शंका-जबकि परिणामों में कोई अतिशय नहीं पाया जाता है अर्थात् सभी केवलियों के परिणाम समान होते हैं तो पीछे भी संसार का घात मत होनो ?
समाधान -नहीं, क्योंकि वीतरागरूप परिणामों के समान रहने पर भी अन्तर्मुहर्त प्रमाण प्रायु कर्म की अपेक्षा से प्रात्मा के उत्पन्न हुए अन्य विशिष्ट परिणामों से संसार का घात बन जाता
शंका-अन्य प्राचार्यों के द्वारा नहीं व्याख्यान किये गये इम अर्थ का इस प्रकार व्याख्यान करने वाले प्राचार्य सुत्र के विरुद्ध जा रहे हैं, ऐसा क्यों न माना जाय?
समाधान-नहीं, क्योंकि वर्षपृथक्त्व के अन्तराल का प्रतिपादन करने वाले सूत्र के बशर्ती प्राचार्यों का ही पूर्वोक्त कथन से विरोध प्राता है ।
शंका-छह माह प्रमाण आयु कर्म के शेष रहने पर जिस जीव को केवलज्ञान उत्पन्न हुया है वह समुद्घात करके ही मुक्त होता है। शेष जीव समृद्घात करते भी हैं और नहीं भी करते हैं।' इस सम्बन्धी प्रमाण गाथाएँ निम्न प्रकार हैं
छम्मासा उवसेसे उप्पण्णं जस्स केवलं जाणं । स-समुग्घानो सिज्झइ सेसा भज्जा समुग्याए ॥१६७॥ छम्मासाउगसेसे उप्पण्णं जेसि केवलं जाएं।
तं णियमा समुग्घायं सेसेसु हवंति भयणिज्जा ॥२०॥' इन गाथानों का उपदेश क्यों नहीं ग्रहण किया जाता है ?
समाधान - नहीं, क्योंकि इस प्रकार विकल्प के मानने में कोई कारण नहीं पाया जाता है, इसलिए पूर्वोक्त गाथानों का उपदेश नहीं ग्रहण किया है।
शङ्का-निम्नलिखित गाथा में समुद्घात करने और न करने का कारण कहा गया है...
१. धवल पु. १ पृ. ३०२-३०३ ।
२. घबल पु. १ पृ. ३०३। ३. प्रा. पं. सं. पृ. ४२ ।