Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 761
________________ गाथा ६६७-६६८ ग्राहारमागंणा/७२७ की आत्मा का प्रत्येक प्रदेश लोकाकाश के प्रत्येक प्रदेश पर फैल जाने पर सर्व प्रात्मप्रदेश मुल शरीर से बाहर हो जाते हैं। शंका- जिन आकाश प्रदेशों पर केवली का शरीर है, उन आकाशप्रदेशों पर केवली के प्रात्मप्रदेश भी हैं। अतः सर्व ग्रात्मप्रदेश मूल शरीर से बाहर नहीं निकले? समाधान ---जहाँ पर केवली का शरीर है, उन अाकाशप्रदेशों पर केवली के प्रात्मप्रदेश हैं, परन्तु उन आत्मप्रदेशों का शरीर से कोई सम्बन्ध नहीं है। जैसे जहाँ नारकियों के शरीर हैं वहाँ पर भी केवली के प्रात प्रात्मप्रदेश हैं किन्तु नारक शारीर से उन प्रात्म प्रदेशो का कोईसम्बन्ध नहीं है, मात्र एकक्षेत्र अवगाह है, इसी प्रकार केवली के शरीर से उन आत्मप्रदेशों का कोई सम्बन्ध नहीं है, मात्र उतने प्रदेश एकक्षेत्र अवगाह रूप हैं। केवली के सर्व प्रात्मप्रदेश शरीर से बाहर निकल कर सर्व लोकाकाश में फैल गये अन्यथा सर्व लोकाकाश में सर्व प्रात्मप्रदेश नहीं फैल सकते । शंका समुद्घात का क्या लक्षण है ? समाधान-- "संभूयात्मप्रदेशानां च अहिरवहननं समुधातः ।" [रा वा. १/२०/१२] प्रर्थात् मिलकर प्रात्मप्रदेशों का बाहर निकलना समुद्धात है। 'समुद्घात' शब्द की निष्पत्ति इस प्रकार से हुई–यहाँ 'सम्' और 'उत्' उपसर्ग पूर्वक 'हन्' धातु है और भाव अर्थ में घञ् प्रत्यय लगा है। इस तरह समृद्घात शब्द बना है। यहाँ पर 'हन्' धातु से गमन क्रिया विवक्षित है। १. वेदना समुद्धात तीव्र वेदना के अनुभव से मुल शरीर को न छोड़ कर आत्मप्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना वेदना समुद्घात है। जैसे सीतादि के द्वारा पीडित रामचन्द्र आदि की चेष्टा हुई थी। वह चेष्टा वेदनासमुद्घात है।' २. कषाय समुद्घात-मुल शरीर को न छोड़ते हुए तीवकषाय के उदय से दूसरे के घात के लिए पात्म प्रदेशों का बाहर निकलना कषायसमुद्यात है। जैसे—संग्राम में सुभटों के लाल नेत्र आदि के द्वारा कयाय समुद्घात प्रत्यक्ष दिखलाई देता है। ३. वक्रियिक समुद्घात- मूल शरीर को न छोड़ते हुए विक्रिया करने के लिए प्रात्मप्रदेशों का बाहर निकलना वैऋियिक समुद्घात है । वह विष्णुकुमार आदि के समान महषियों व देवों के होता है । ४. मारणान्सिक समुद्घात-मरणान्त समय में, मूल शरीर को न छोड़कर जहाँ की प्रायु का बंध किया है, उस प्रदेश को स्पर्श करने के लिए प्रारमप्रदेशों का बाहर निकलना मारणान्तिक समुद्घात है। शंका-वेदना समुद्घात और कषाय समुद्घात ये दोनों मारणान्तिक समुद्घात में अन्तर्भूत क्यों नहीं होते ? १. स्वा. का अनु. गा. १७६ को टीका पृ. ११५ ।

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