Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६६४ / गो. सा. जीवकाण्ड
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विशेषार्थ - शङ्का - सम्पूर्ण तीर्थकरों की अपेक्षा श्री पद्मप्रभ भट्टारक का अधिक था, क्योंकि वे तीन लाख तीस हजार ( ३३००००) मुनिगणों से वेष्टित थे। एकसौ सत्तर से गुणा करने पर पाँच करोड़ इकसठ लाख संयत होते हैं । परन्तु यह कहे गये संयतों के प्रसारण को नहीं प्राप्त होती । इसलिए यह गाथा ठीक नहीं है ।
समाधान- सम्पूर्ण अवसपिगियों की अपेक्षा यह हुण्डावसर्पिणी है, इसलिए युग के माहात्म्य से घटकर ह्रस्व भाव को प्राप्त हुए हुण्डावसर्पिणी काल सम्बन्धी तीर्थंकरों के शिष्य परिवार को हरके गाय नहीं है, क्योंकि शेष अवसर्पिणियों में तीर्थंकरों के बड़ा शिष्य परिवार पाया जाता है। दूसरे, भरत और ऐरावत क्षेत्र में मनुष्यों को अधिक संख्या नहीं पाई जाती है, जिससे उन दोनों क्षेत्र सम्बन्धी एक तीर्थंकर के संघ के प्रमाण से विदेह सम्वन्धी तीर्थंकर का संघ समान हो । किन्तु भरत - ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यों से विदेहक्षेत्र के मनुष्य संख्यात गुण हैं । उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
चट्ठी छच्च सया छाल द्विसहस्स चे छाससिय सहस्सा कोडिच वर्क
अन्तरद्वीपों के मनुष्य सबसे कम हैं। उत्तरकुरु देवकुरु के मनुष्य उनसे संरूपातगुणे हैं । उनसे संख्यातगुणे हरि और रम्यक क्षेत्र के मनुष्य हैं। उनसे संख्यातगुणे हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्य हैं। उनसे संख्यातगुणे भरत और ऐरावत क्षेत्र के मनुष्य हैं। उनसे संख्यातगुणे विदेहक्षेत्र के मनुष्य हैं । वहुत मनुष्यों में संयत जीव बहुत ही होंगे इसलिए इस क्षेत्र सम्बन्धी संयतों के प्रमाण को प्रधान करके जो दूषण कहा गया है, वह ठीक नहीं है ।" उत्तर मान्यता का कथन इस प्रकार है-
परिमाणं । पमत्ताणं ।। ५२ ।।
गाथा ६३३
शिष्य परिवार इस संख्या को संख्या गाथा में
वे कोडि सत्तवीसा होंति सहस्सा तहेब णवरणउदी ।
चउसद श्रद्वाणउदी परिसंखा होदि विदियगुणे ॥ ५३ ॥ ३
- [ उत्तर मान्यता के अनुसार ] प्रमत्तसंयतों का प्रमाण चार करोड़ घास लाख छ्यासठ हजार छहसी चौसठ (४६६६६६६४) है |
पंचेच समसहस्सा होंति सहस्सा तहेब तेत्तीसा । अदुसया चोसीसा जवसम - खबगारण केवलिखो ।। ५५ ।।
- [ उत्तर मान्यता के अनुसार ] द्वित्तीय गुणस्थान प्रर्थात् ग्रप्रमत्त संयत जीवों की संख्या दो करोड़ सत्ताईस लाख निन्यानवे हजार चारसौ ग्रट्ठानवे | २२७६६४६८ ] है ।
- [ उत्तर मान्यता के अनुसार ] चारों उपशमक, पाँचों क्षपक और केवली ये तीनों राशियों मिलकर कुल पाँच लाख तेतीस हजार प्रासो चौतीस है ( ५३३८३४) ।
इन सब संगतों को एकत्र करने पर एक सौ सत्तर कर्म भूमिगत सम्पूर्ण ऋषि होते हैं ।
१. घ. पु. ३ पृ. ९०-९६ । २. वन्न पु. ३ पृ. ६६ । २. प्र. पु. ३ पु. १००/ ४. घवल पु. पृ. १०१ ।