Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 745
________________ गाया ६५०-६५१ सम्बत्वभार्गग्गा/७११ समाधान-यथास्थित अर्थ के श्रद्धान को घात करने वाली शक्ति जब सम्यक्त्व प्रकृति के स्पर्धाकों में क्षीण हो जाती है, तब उनकी क्षायिक संज्ञा है । क्षीगा हुए स्पर्धकों के उपशम को अर्थात् प्रसन्नता को क्षयोपशम कहते हैं। उसमें उत्पन्न होने से वेदक सम्यक्त्व क्षायोपमिक है। यह कथन घटित हो जाता है।" बात यह है कि कर्मों के उदय होते हए भी जो जीव गुण का अंश उपलब्ध रहता है बह क्षायोपशमिक भाव है । (३. ५।१८५) श्री ब्रह्मदेव ने भी कहा है कि देशघाती स्पर्धकों के उदित होते हुए जो एकदेश (प्रांणिक) ज्ञानादि गुणों का उघाड़ (प्राप्ति) है, वह क्षायोपशमिक भाव है। जो वेदक मम्यग्दष्टि जीव है वह शिथिल श्रद्धानी होता है, इसलिए वृद्ध पुरुप जिस प्रबार अपने हाथ में लकड़ी को शिथिलतापूर्वक पकड़ता है, उसी प्रकार वह भी तत्त्वार्थ के विषय में शिथिल्लग्राही होता है, अत: कुहेतु और कुहाटान्त से उस सम्यक्त्व की विराधना करने में देर नहीं लगती है। उपशम सम्पन्न का स्वरूप नःषा पांच लठिनयाँ दसणमोहवसमदो उप्पज्जइ जं पयत्थसहहणं । उवसमसम्मत्तमिरणं पसण्णमलपंकतोयसमं ।।६५०॥ खयउयसमियविसोही देसण-पाउग्ग-करणलद्धी य । चत्तारि वि सामपणा करणं पुण होदि सम्मत्ते ॥६५१॥' गाथार्थ – जिभ प्रकार कीचड़ के नीचे व जाने से जल निर्मल हो जाना है उमी प्रकार दर्शनमोहनीय कर्म के आशम से पदार्थ का जो श्रद्धान होता है वह उपशम सम्यक्त्व है ।। ६५ ।। क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण ये पाँव लब्धियां होती हैं। इनमें से चार तो सामान्य हैं । परन्तु करण नब्धि के होने पर सभ्यक्त्व अवश्य होता है ।।६५१ ।। विशेषार्थ – जैसे कतक प्रादि द्रव्य के सम्बन्ध से जल में कीचड़ का उपशम हो जाता है उसी प्रकार यात्मा में कर्म की निज णनि का करगावश प्रकट न होना उपशम है।५ प्रथमोपशममभ्यग्दर्शन से पूर्व अयोपशम लब्धि १, विशुद्धि लब्धि, देशना नब्धि ३, प्रायोग्य लब्धि ४, करगा लब्धि ५, ये पाँच रन ब्धियाँ होती हैं। इनका मविस्तार कथन लब्धिसार ग्रन्थ में है, यहाँ भी संक्षेप में कहा जाता है। कम्ममलपउलसत्ती पडिसमयमणंतगुणविहीणकमा । होणुवीरदि जदा तदा स्वनोयसम लद्धी दु ॥४॥ [लब्धिसार] -कर्म मल रूप पटल की फलदान शक्ति अर्थात् अनुभाग जिम काल में प्रति समय क्रम से अनन्तगुणा हीन होकर उदय को प्राप्त होता है, वह क्षयोपशम लब्धि है । १. श्रवल पु. ५ पृ. २०० | २. धवल पु. १ पृ. १७१। ३. धवल पृ. १ पृ. ३६६ । व २०५; लबिमार गा. ३। ५. सर्वार्थसिद्धि । ४. धवल पु. ६ पृ. १३६

Loading...

Page Navigation
1 ... 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833