Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ६३४-६४९
सम्यक्त्व मागंगा / ६६७
श्रावली के असंख्यातवें भाग मात्र प्रक्षेप शलाकाएँ प्राप्त होती हैं। उन प्रक्षेपशलाकाओं की ग्रोध असंगत सम्यग्दष्टि के अबहार काल मिला देने पर देव असंयत सम्यग्दृष्टि अवहारकाल का प्रमाण प्राप्त होता है । "
देव प्रसंयत सम्यग्दष्टि सम्बन्धी यवहार काल को आवली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर देव सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवराशि सम्बन्धी अवहारकाल होता है। क्योंकि असंयत सम्यग्दष्टि के उपक्रमण काल से सम्यग्मिथ्यादृष्टि का उपक्रमण काल प्रसंख्यात गुणा हीन है। देव सम्यग्मिथ्यादृष्टि सम्बन्धी अवहारकाल को संख्यात से गुरिणत करने पर देव सासादन सम्यग्दृष्टि जोराशि सम्बन्धी अवहार काल प्राप्त होता है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यादृष्टि के उपक्रमण काल से सासादनसम्यग्वष्टि का उपक्रमण काल संख्यातगुणा होन है । ग्रथवा सम्यग्मिथ्यात्व - गुणस्थान को प्राप्त होने बाली जोवराशि के संख्यातवें भाग मात्र उपशम- सम्यग्वष्टि जीव सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान को प्राप्त होते हैं। इसलिए भी देव सम्यग्मिथ्यादृष्टि के अवहार काल से देव सासादन सम्यग्दृष्टि का अवहार काल संख्यात गुणा है ।
देव असंयत सम्यग्वष्टि अवहार काल को श्रावली के श्रसंख्यातवें भाग से खण्डित करके उनमें से एक खण्ड को उसी देव असंयत सम्यग्दृष्टि प्रवहार काल में मिला देने पर सौधर्म और ऐशान स्वर्ग सम्बन्धी असंयत सम्यग्दृष्टियों का अवहार काल होता है। इसे आवली के प्रसंख्यातव भाग से गुणित करने पर सौधर्म और ऐशान सम्बन्धी सम्यग्मिथ्यादृष्टियों का अवहारकाल होता है । क्योंकि सम्यम्टष्टियों के उपक्रमकाल से सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के उपक्रमकाल में भेद है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के अवहारकाल को संख्यात में गुणित करने पर सौधर्म और ऐशान सम्बन्धी सामानसम्यग्दृष्टियों का यवहार काल होता है, क्योंकि सम्यग्मिथ्यादृष्टियों के उपक्रमणकाल से मासादन सम्यग्दष्टियों के उपक्रमणकाल में भेद है । अथवा उक्त दोनों गुणस्थानों को प्राप्त होने बाली राशियों में विशेषता है। सौधर्म और ऐशान सासादनसम्यग्दृष्टियों के अवहारकाल को प्रावली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर मानत्कुमार और माहेन्द्र असंयत सम्यग्वष्टियों का वहार काल होता है, क्योंकि ऊपर शुभ कर्मों की बहुलता होने से बहुत जीव नहीं पाये जाते हैं । इसी प्रकार तार- सहस्रार कल्प तक ले जाना चाहिए। उन शतार सहस्रार कल्प के सासादन सम्यग्वष्टि सम्बन्धी अवहार काल को धावली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर ज्योतिषी असंयत सम्यग्टयों का अवहार काल होता है, क्योंकि वहाँ पर व्युद्ग्राहित आदि मिथ्यात्व के साथ उत्पन्न हुए और जिनशासन के प्रतिकूल देवों में सम्यक्त्व को प्राप्त होने वाले बहुत जीवों का प्रभाव है।" उन असंयत सम्यग्दृष्टि ज्योतिषीदेवों के अवहारकाल को मावली के असंख्यातवें भाग से गुणित करने पर सम्यग्मिथ्यादृष्टि ज्योतिषियों का अवहार काल होता है। इसे संख्यात से गुणित करने पर सासादनसम्यग्दष्टि ज्योतिषियों का ग्रवहारकाल होता है। इसी प्रकार वारणव्यन्तर और भवनवासी देवों में क्रम से अवहारकाल ले जाना चाहिए, क्योंकि जिनकी दृष्टि मिथ्यात्व से याच्छादित है उनमें बहुत सम्यग्दृष्टियों की उत्पत्ति सम्भव नहीं है । "
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भवनवासी सासादन सम्यग्दष्टियों के यवहार काल से निर्यच यसंयत सम्यग्दष्टि का ग्रवहार
१. धवल पु. २ पृ. १५६ । २. धवल पु. ३ पृ. १५६-१६० । ३. घवल पु. ३ पृ. २६२-२८३ । गु. ३ पृ. २८३ ।
४. पत्रल