Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ६४४-६४५
सम्यक्त्वमार्गणा / ७०३
विशेषार्थ "समये प्रबध्यत इति समयप्रबद्ध ः "" एक समय में जितना कर्म बाँधा जाता है, वह
समयबद्ध है ।
- समयप्रवद्ध का कितना प्रभाग है ?
शङ्का
समाधान एक समयप्रवद्ध में पुद्गल द्रव्य का प्रमाण अनन्त है । कहा भी है
.
पंच रस-पंचवणेहि परिणयदुगंध चदुहि फासे हि । दविमरतपसं जीवेहि प्रणतगुणहीणं ॥ २ सयलरसरूवगंधेहि परिणदं चरमचदुहिं फासेहिं । सिद्धादो ऽभव्वादोऽणंतिमभागं गुणं दव्वं १९६१ ॥ ३
"प्रणतपसं सव्वजीवह प्रणतगुणही अभवसिद्ध हि कम्मबंध जोग पुग्गलदव्वं होइ ।"
प्रणतगुण-सिद्धारणमणंतभागं
--- सर्व जीवराशि से अनन्तगुणा हीन, अभव्यों से अनन्तगुणा अर्थात् सिद्धों के अनन्त भाग कर्मे बंधयोग्य अनन्त मुद्गल प्रदेश (परमाणु) प्रतिसमय जीव बँधते हैं, वही समय प्रबद्ध है । जितना द्रव्य बँधता है उतने ही द्रव्य का प्रति समय कर्म रूप से श्रास्रव होता है अर्थात् एक समय-- प्रवद्ध प्रमाण द्रव्यकर्म का बन्ध होता है अतः एक समयबद्ध प्रमाण का ही मानव होता है। और एक समयबद्ध प्रमाण का ही संवर होता है, क्योंकि आस्रव का निरोध ही संबर है ।" वह संवर दो प्रकार का है ( १ ) भाव संवर ( २ ) द्रव्य संवर । संसार की निमित्तभूत क्रिया की निवृत्ति भावसंबर है। संसार की निमित्तभूत क्रिया का निरोध होने पर कर्मपुद्गलों के ग्रहण का विच्छेद द्रव्यसंवर है। कहा भी है
परिणामो जो कम्मरसासबखिरोहणे हेदू ।
सो भावसंवरो खलु दरवासवरोहणं प्रण्लो ।। ३४ ।। [ द्रव्यसंग्रह ]
--जो आत्म-परिणाम कर्म याश्रव को रोकने में कारण हैं वे भावसंवर हैं और द्रव्यकर्मों के प्रसव का रुकना द्रव्यसंचर है। उस द्रव्य-संवर का प्रमाण एकसमयबद्ध मात्र है ।
शङ्का - प्रसव का निरोध संवर है, इसलिए यात्रव का कथन करना चाहिए था। ग्राव किसे कहते हैं ?
समाधान --ग्रासव दो प्रकार का है ( १ ) भाव-प्रास्रव (२) द्रव्य-ग्रास्रव ।
प्रसवदि जेरण कम्मं परिणामेण परणो स विप्रो ।
भावासयो जिणुत्तो कम्मासवरणं परो होदि ||२६|| [ द्रव्यसंग्रह ]
१. धवल पु. १२. ४७८ । २. प्रा. पं. सं. पृ. २८० मा ४६५. पू. सं. पू. ६२४ । ५. "ग्राम्रवनिरोधः संदर: ।२६ / १ || " [त. मु]।
६२४ मा. १२० । २. गो. क. ६. स. सि. ९ /१ ।
४. प्रा. पं.