Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 722
________________ ६८/गो, सा. जीवकाण्ड गाथा ३२५-६२६ समाधान-सासादन सम्यादृष्टि राशियों के त्रिकालविषयक उत्कृष्ट संचय का प्राश्रय लेकर प्रमाण कहा गया है, इसलिए उस अपेक्षा से वृद्धि और हानि नहीं है। अतः पूर्वोक्त भागहारों का कथन बन जाता है ।' अंकसंदृष्टि द्वारा कथन इस प्रकार है. पण्णट्ठी च सहस्सा पंचसया खलु छउत्तरा तोस । पलिदोवमं तु एदं विधारण संदिट्टिणा दिटु ॥३॥ विसहस्सं प्रड्याल छष्णउदी चेय चदु सहस्सासि । सोल सहस्सारिख पुरणो तिगिणसया बजरसीदी या ॥३६॥ पंचसय वारसुत्तरमुद्दिवाई तु लक्ष दवाई । सासरण-मिस्सासंजद · विरदाविरदारण गु कमेण ॥४॥ -सठ हजार पाँच सौ छत्तीस को पल्योपम मान कर कथन किया गया है। सामादन सम्यग्दृष्टि जीवराशि का प्रमाण २०४८, सम्यमिथ्यादृष्टि जीवराशि का प्रमाण ४०६६, असंयत्त सम्यग्दृष्टि जीवराशि का प्रमाण १६३६४ और संयतासंयत जीवराशि का प्रमाण ५१२ अाता है। सासादन सम्यग्दृष्टि सम्बन्धी भागहार ३२, सम्यग्मिथ्यादृष्टि संबन्धी भागहार १६, असंयन सम्यग्दृष्टि सम्बन्धी भागहार ४ और संयतासंयत सम्बन्धी भागहार १२८ है। प्रमत्त व अप्रमत्त संयत जीवों की संख्या तिरधिय-सय-रणवरणउवी छण्णउदी अप्पमत्त वे कोडी । पंचेव य तेरणउदी रणवटूविसयच्छउत्तरं पमदे ॥६२५॥" गाथार्थ -प्रमत्तसंयत्त जीवों का प्रमारण पांच करोड़ तेरानवे लाख प्रदानवे हजार दो सौ छह है और अप्रमत्तसंयत जीबों का प्रमाण दो करोड़ छयानबे लाख निन्यानवे हजार एक मौ तीन है ।।६२५।। विशेषार्थ -प्रमत्तसंयत जीवों का प्रमाण ५६३६८२०६ है और अप्रमत्त मयत जीवों का प्रमाण २६६६६१०३ है । शंका-अप्रमत्तसंयत के द्रव्यप्रमाण से प्रमत्तसंयत का द्रव्यप्रमाण किस कारण से दूना है ? समाधान-क्योंकि अप्रमत्तसंयत के काल से प्रमत्तसंयत का काल दुगुणा है । चागें गुणस्थानों के उपशामक व क्षपक जीयों की संख्या तिसयं भरणंति केई चउरुत्तरमस्थपंचयं केई । उपसामगपरिमाणं खवगाणं जाण तदुगरणं ॥६२६।। १. प्रवल पु. ३ पृ. ७०-७१ । २. धवल पु. ३ पृ. ८८। ३. धवल पु. ३ पृ. ८८ । ४. पवन पु. ३ पृ. ६० किन्तु "तिगहिप-सद"पाट है और 'मदे' के स्थान पर 'य' पाठ है। ५. धवल पू. ३.६० ६. धवल पु. ३ पृ. ६४ गा. ४५ ।

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