Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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५३६/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ४६-४७३
नावरण कषाय का उदय संयम का घालक है, संयमासंयम का घातक नहीं है । प्रत्याख्यानावरण कपायोदय में संयमासंयम गुरगस्थान के होने में कोई बाधा नहीं आती।
संयम के पानी कर्मों के उदय से लीव असंयत होता है ।'
शङ्का-एक अप्रत्याख्यानावरण का उदय ही असंयम का हेतु माना गया है, क्योंकि वही संयमासंयम के प्रतिषेध से प्रारम्भ कर समस्त संयम का पाती होता है । तब फिर 'संयमपाती कर्मों के उदय से असंयत होता है ऐसा कहना कसे घटिस होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि दूसरे भी चारित्रावरण कर्मों के उदय के बिना केवल अप्रत्याख्यानावरण के देशसंयम को घात करने का सामर्थ्य नहीं है।
शङ्का-संयम तो जीव का स्वभाव है, इसलिए यह अन्य के द्वारा विनष्ट नहीं किया जा मकता, क्योंकि उसका विनाश होने पर जीवद्रव्य के भी विनाश का प्रसंग आ जायेगा?
समाधान नहीं पाएगा, क्योंकि जिस प्रकार उपयोग जीव का लक्षण माना गया है, उस प्रकार संयम जीव का लक्षण नहीं होता।
शङ्का-लक्षण किसे कहते हैं ?
समाधान-जिसके प्रभाव में द्रव्य का भी प्रभाव हो जाता है वही उम द्रव्य का लक्षण है जसे-पुद्गल का लक्षण रूप-रस-गन्ध-स्पर्श है तथा जीव का लक्षण उपयोग है। अतएव संबम के अभाव में जीव द्रव्य का प्रभाव नहीं होता।
मामायिक, छेदोपस्थापना और परिहारविशुद्धि संयम संगहिय सयलसंजममेयजममणुत्तरं दुरवगमं । जीवो समुव्यहंतो सामाइयसंजमो होदि ॥४७०॥ छेत्तूरण य परियासं पोराणं जो ठवेइ अप्पारणं । पंचजमे धम्मे सो छेदोवट्ठावगो जीवो ॥४७१।।' पंचसमिदो तिगुत्तो परिहर इ सदावि जो हु सायज्ज । पंचेक्ज मो पुरिसो परिहारयसंजदो सो हु ॥४७२॥' तीसं वासो जम्मे वासपुधत्तं स्खु तित्थयरमूले । पच्चक्खाणं पढिदो संझरणदुगाउयविहारो ॥४७३॥
१. धवल पु. ७ J. ६५ मुत्र ५५ । २. धवल पु. ७ पृ. ६५। ३. धवल पु. ७ पृ. ६६। ३७२ गा १७, प्रा. पं. सं. गा. १२६ पृ. २८1 ५. घवल पु. १ पृ. ३७२ गा. १८६, पृ.२८। ६. धवल पु. १. ३६२ गा १८६ प्रा.पं.सं.गा. १३१ . २८ ।
४. धवल पु.१ पृ. प्रा.पं.मं गा. १३०