Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ४७६-४७७
संघममारणा: ५४३
-प्रमाद से युक्त प्रात्मा पहले स्वयं अपने द्वारा ही अपना घात करता है, इसके बाद दुसरे प्राणियों का वध होवे या न होने ।'
"थूले तसकायवहे" प्रस्य अर्थ:--स्थूले त्रसकायवधे परिहारः। [चारित्र पाहुड़ गा. २३ टीका]-*
-स्थूल रूप से त्रस जोवों की हिंसा का त्याग करना अहिंसाणुव्रत है । शङ्का-असत्य किसे कहते हैं ? समाधान - "असदभिधानमनृतम्"॥७॥१४॥ असत् बोलना अन्त है ।
'सत्' शब्द प्रशंसाबाची है। जो सत् नहीं वह असत् है। असत् का अर्थ अप्रशस्त है । तात्पर्य यह है कि जो पदार्थ नहीं है, उसका कथन करना अनून (असत्य) है । ऋत का अर्थ सत्य है और जो ऋत (सत्य) नहीं है वह अनूल है।
शङ्का-अप्रशस्त किसे कहते हैं ?
समाधान जिससे प्राणियों को पीड़ा होती है, वह अप्रशस्त है। चाहे वह विद्यमान अर्थ को विपय करता हो चाहे विमान को जिन वन से हिमा हो यह वचन अनत है ।२ अन्त वचन का एकदेशत्याग सत्य अणुव्रत है ।
"थूले मोसे-स्थूलमृषाबाबे परिहारः।" [चारित्र पाहुड गा. २३ टीका) स्थूल रूप से असत्य कथन का त्याग करना सत्याणुवत है।
शङ्का-- चोरो किसे कहते हैं ?
समाधान-- "प्रदत्तादानं स्तेयम् ।" बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय (चोरी) है । 'पादान' प्रब्द का अर्थ ग्रहण है। बिना दी हुई वस्तु का लेना अदनादान है और यही स्तेय (चोरी) है।
शङ्का-यदि स्तेय का पूर्वोक्त अर्थ किया जाता है तो कर्म और नोकर्म का ग्रहण भी स्तेय है ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि जहाँ देना और लेना सम्भव है वहीं स्तेय का व्यवहार होला है।
शङ्का स्तेय का उक्त अर्थ करने पर भी भिक्षु के नाम-नगरादिक में भ्रमण करते समय गली, कू.चा, दरवाजा आदि में प्रवेश करने पर विना दी हुई वस्तु का ग्रहण प्राप्त होता है ?
समाधान यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि वे गली, कुचा और दरवाजा आदि मव के लिए खुले हैं। ये भिक्ष जिनमें किंवाड़ ग्रादि लगे हैं उन दरवाजे आदि में प्रवेश नहीं करते, क्योंकि वे
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६. मर्थिसिद्धि ७।१३। २, ममिद्धि ७।१४। ३. सर्वार्थसिद्धि ७।१५ ।