Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६७८ / गो. सा. जीव काण्ड
समाधान- यह कोई दोष नहीं है क्योंकि जघन्य गुण के ऊपर एक अविभाग प्रतिच्छेद की वृद्धि होने पर दो गुणभाव देखा जाता है |
शङ्का - एक ही प्रविभागप्रतिच्छेद की द्वितीय गुगा संज्ञा कैसे है ?
समाधान - क्योंकि मात्र उतने ही गुणान्तर की द्रव्यान्तर में वृद्धि देखी जाती है। गुगा के द्वितीय स्था विशेष की द्वितीय गुण संज्ञा है और तृतीय अवस्था विशेष की तृतीय गुण संज्ञा है । इसलिए जघन्थ गुरण के साथ ( एक-एक अविभाग प्रतिच्छेद की वृद्धि होने पर ) द्विगुणपना और त्रिगुणना बन जाता है । '
गाथा ६०६-६१८.
इन गुण वाले परमाणुओं की आदि ( प्रथम ) वर्गणा होती है। क्योंकि प्रथम वर्गेण । की एक श्रृणुक संज्ञा है । इनमें से दो श्रादि गुण वाले परमाणु बन्ध के योग्य होते हैं । बन्ध नियम कम से कम दो परमाणु का होता है । इन दो परमाणुओं का परस्पर बन्ध हो जाने पर कि संज्ञा हो जाती है। स्निग्ध परमाणु दूसरे स्निग्ध परमाणु के साथ नहीं बँधते, क्योंकि स्निग्ध गुण की अपेक्षा वे समान हैं। रूक्ष परमाणु दूसरे रूक्ष परमाणु के साथ नहीं बँधता, क्योंकि रूक्ष गुण की अपेक्षा त्रे समान हैं। स्निग्ध पुद्गल और रूक्ष पुद्गल परस्पर बन्ध को प्राप्त होते हैं क्योंकि इनमें विशता (असमान जातिता) पाई जाती है ।
शङ्का1- क्या गुरणों के अविभागप्रतिच्छेदों की अपेक्षा समान स्निग्ध और रुक्ष पुद्गलों का बन्ध होता है या श्रविभागप्रतिच्छेदों की अपेक्षा विसदृश स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का बन्ध होता है ?
समाधान- जो स्निग्ध और रूक्ष गुणों से युक्त गुद्गल, गुरणों के अविभागीप्रतिच्छेदों की अपेक्षा समान होते हैं वे रूपी कहलाते हैं । वे भी बँधते हैं । अरूपी अर्थात् असमान प्रविभागप्रतिच्छेद वाले भी बँधते हैं। स्निग्ध और रूक्ष पुद्गल गुणों के अविभागप्रतिच्छेदों की संख्या की अपेक्षा चाहे समान हो चाहे समान हो उनका परस्पर बन्ध होता है ।
शङ्का - क्या स्निग्ध का स्निग्ध के साथ या रूक्ष का रूक्ष के साथ सर्वथा बन्ध नहीं होता ?
बन्ध होता है तो दो गुण पुद्गल के साथ यदि बन्ध अवस्थाओं में स्निग्ध का
समाधान- स्निग्ध पुद्गल का अन्य स्निग्ध पुद्गल के साथ यदि अधिक स्निग्ध पुद्गल के साथ ही होता है । रूक्ष पुद्गल का अन्य रूक्ष होता है तो दो गुण अधिक रूक्ष पुद्गल के साथ ही बन्ध होता है । अन्य ferve के साथ और रूक्ष का रूक्ष के साथ बन्ध नहीं होता । कहा भी है
"द्वधिका विगुणानां तु ॥ ५ / ३६ || " [ तत्त्वार्थसूत्र ]
- दो अधिक गुण वालों का बन्ध होता है । जैसे दो स्निग्ध गुणवाले परमाणु का एक स्निग्ध गुणवाले परमाणु के साथ, दो स्निग्ध गुणवाले के साथ, तीन स्निग्ध गुणवाले परमाणु के साथ बन्ध नहीं होता, चार स्निग्ध गुणवाले परमाणु के साथ अवश्य बन्ध होता है तथा उसी दो स्निग्ध गुणवाले परमाणु का पाँच स्निग्ध गुण वाले परमाणु के साथ, इसी प्रकार छह, सात, आठ संख्यात, असंख्यात और
१. वल पु. १४ पृ. ४५१ । २. घवल पु. १४ पृ. ३१ व ३२ ॥ ३. चनल पु. १४ पृ. ३३ ।