Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ६२०
शंका – अस्तिकाय कौन-कौन से हैं? अस्तिकाय का क्या स्वरूप है ?
समाधान- जीव, पुद्गल, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य और श्राकाश ये पाँच अस्तिकाय है, क्योंकि ये सत् रूप हैं और बहुप्रदेशी हैं। श्री कुन्दकुन्द प्राचार्य ने कहा भी है
जीवा पुग्गलकाया धम्माषम्मा तहेव आगासं । श्रत्थित्तम्हि य यिदा श्रणष्णमया श्रणुमहंता ॥४॥
[ पंचास्तिकाय ]
1
-जीव, पुद्गल काय, धर्म, अधर्म तथा ग्राकाश अस्तित्व में नियत और अनन्यमय हैं तथा प्रदेश में बड़े हैं । ये पाँचों द्रव्य अपनी-अपनी महासत्ता व अवान्तर सत्ता में स्थित हैं और सत्ता से अनन्य हैं । इसलिए प्रस्तिरूप हैं। इन पांचों द्रव्यों में कायपना भी है, क्योंकि वे प्रणुमहान् हैं । यहाँ अणु शब्द से सबसे छोटा अंश प्रदेश ग्रहण किया गया है। जो प्रदेशप्रचयात्मक हो वह श्रणुमहान् है ।'
शङ्का - एकप्रदेशी पुद्गल परमाणु के कायपना कैसे सम्भव है ?
समाधान -- स्निग्धत्व और रूक्षत्व शक्ति के सद्भाव से परमाणु स्कन्ध का कारण है इसलिए उपचार से कायत्व है । २
जेसि प्रत्थि सहा गुणेहि सह पज्जएहि विविहि ते होंति अस्थिकाया लिप्पणं जेहि तलुक्कं ॥५॥
[ पंचास्तिकाय ]
- जिनका विविध गुण और पर्यायों के साथ अस्ति स्वभाव है, वे अस्तिकाय हैं। जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पदार्थ प्रवयवी हैं और प्रदेश उनके अवयव हैं । प्रदेशों के साथ उन पंचास्तिकाय का अनन्यपता है, अतः उनके कार्यत्व की सिद्धि होती है । "
एवं प्रमेयमिदं जीवाजीवप्पभेददो अत्तं कालविजुतं णादव्वा पंच प्रथिकाया संति जदो सेर दे अतिपत्ति भगति जिरगवरा जह्मा ।
काया इव बहुदेसा ह्या काया य अत्यिकाया य ||२४||
सम्यक्त्वमार्गणा: ६०१
दवं ।
॥२३॥
होंति प्रसंखा जीवे धम्माम्मे भ्रणंत श्रायासे ।
मुतिविपसा कालस्सेगी रा तेण सो काश्रो ।। २५।। [ वृहद्भभ्यसंग्रह ]
- जीव और प्रजीव के प्रभेद से ये द्रव्य छह प्रकार के हैं। कालद्रव्य के विना शेष पाँच द्रव्य ग्रस्तिकाय हैं। चूंकि विद्यमान हैं इसलिए ये अस्ति हैं और ये शरीर के समान बहुप्रदेशी हैं, इसलिए ये काय हैं । ग्रस्ति तथा काय दोनों को मिलाने से ग्रस्तिकाय होते हैं। जीव, धर्म, तथा अधर्म द्रव्य में असंख्यात प्रदेश हैं और आकाश में अनन्त प्रदेश हैं । पुद्गल संख्यात, प्रसंख्यात तथा अनन्तप्रदेशी है । इस प्रकार मुद्गल के तीन प्रकार के प्रदेश हैं । काल के एक ही प्रदेश है, इस कारण काल द्रव्य कायवान नहीं है ।
१. पंचातिकाय गाथा ४ समयव्याख्या टीवन । २. पं. कागा ४ यंवृत्ति टीका । समयव्याख्या टीका ।
३. पं.का. ५.