Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६८४ गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा १२२ "पुनात्यात्मानं पूयतेऽनेनेति वा पुण्यम् । पाति रक्षति प्रात्मानं शुभादिति पापम् ।" ___ -जो प्रात्मा को पवित्र करता है या जिमसे आत्मा पवित्र होता है, वह पुण्य है। जो प्रात्मा को शुभ से बचाता है, वह पाप है।
मिथ्यादृष्टि व मामादन सम्यग्दृष्टि का कथन मिच्छाइदी पाबा ताणता य सासरण गुरगावि ।
पल्लासंखेज्जदिमा अरणप्राणदरुदयमिच्छगुरगा ॥६२३॥ गाथार्थ-मिथ्यादष्टि पापजीव हैं जो अनन्तानन्त हैं। सासादनसम्यग्दृष्टि भी पापजीव है, जो पल्य के असंख्यातवें भाग है। किसी एक अनन्तानुबन्धी का उदय होने से मिथ्यात्व गुणस्थान (सासादन) में गिरता है ।।६२३।।
विशेषार्थ-मिथ्या, वितथ, व्यनीक और असत्य ये एकार्थवाची नाम हैं। एष्टि शब्द का अर्थ दर्शन या श्रद्धान है। जिन जीवों के विपरीत, एकान्त, विनय, संशय और अज्ञान रूप मिथ्यात्व कर्म के उदय से उत्पन्न हुई मिथ्यारूप दृष्टि होती है, वे मिथ्यादृष्टि जीव हैं।'
सम्यक्त्व की विराधना को प्रासादन कहते हैं। जो इस ग्रासादन से युक्त है वह सासादन सम्यग्दृष्टि है। किसी एक अनलावधी पाय के उदय जिसका सम्यग्दर्शन नष्ट हो गया है, किन्तु जो मिथ्यात्व' रूप परिणाम को नहीं प्राप्त हुआ है किन्तु मिथ्यात्व गुणास्थान के अभिमुख है वह सासादन सभ्यग्दृष्टि है ।
शंका-सामादन सम्यग्दृष्टि के मिथ्यात्व का उदय न होने से उसकी असत्य इष्टि नहीं है, अत: वह पापजीव नहीं हो सकता ?
समाधान नहीं, क्योंकि विपरीत-अभिनिवेश दो प्रकार का है। वह विपरीतअभिनिवेश मिथ्यात्व के निमित्त से भी होता है और अनन्तानुबन्धी कषायोदय से भी उत्पन्न होता है। सासादन गुणस्थान बाले के अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय पाया जाता है। अतः अनन्तानुबन्धी जनित विपरीताभिनिवेश के कारण सासादन गुणस्थान वाला भी पापजीव है।
यह मिथ्यात्व गुणस्थान को नियम से प्राप्त होगा इसलिए इसको मिथ्याष्टि पापजीव ही कहते हैं।
___ शंका-अनन्तानुबन्धी कषाय तो चारित्रमोहनीय कर्म है फिर वह सम्यग्दर्शन का कसे घात कर सकती है ?
समाधान–अनन्तानुबन्धी क.पाय द्विस्वभावी है। इसलिए बह सम्यग्दर्गन का भी घात करती है।
१. सर्वार्थ सिद्धि ६।३ । २. पवल पु. १ पृ. १६२। ५. धवल पु. ६ पृ. १२ ।
३. बनल पु. १ पृ. १६३ ।
४. घचल । १ पृ. ३६१ ।