Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ६०६-६१६
सभ्यवत्वमार्गणा / ६७७
जघन्य गुणवाला परमाणु स्व या पर-स्थान में कहीं पर भी बन्ध के योग्य नहीं होता । किन्तु वहिरंग अन्तरंग कारण मिलने पर गुणान्सर को प्राप्त होकर बँध जाता है ।। ६१८ । । बन्ध होने पर स्निग्ध या रूक्ष अधिक गुण वाला हीन गुण वाले को परिणमा लेता है। उस परमाणु का बन्ध संख्यात प्रदेशी के साथ भी हो सकता है, असंख्यातप्रदेशी व मनन्तप्रदेशी स्कन्धों के साथ भी हो सकता है अथवा परमाणु का परमाणु के साथ भी बन्ध हो सकता है ||६१६ ।
विशेषार्थ - स्निग्ध या दक्ष गुण के कारण मुद्गल परमाणु का बन्ध होता है।" बाह्य और श्रभ्यन्तर कारण से जो स्नेह पर्याय उत्पन्न होती है, उस पर्याय से युक्त पुद्गल स्निग्ध होता है । इसकी व्युत्पत्ति 'स्निह्यते स्मेति स्निग्ध:' होती है। रूखीपर्याय से युक्त पुद्गल रूक्ष होता है। स्निग्ध पुद्गल का धर्म स्निग्धत्व है और रूक्ष पुद्गल का धर्म रूक्षत्व है । द्वणुक आदि लक्षण वाला जो बंध होता है वह स्निग्ध और रूक्षत्व का कार्य है। स्निग्ध और रूक्ष गुणवाले दो परमाणुओं का परस्पर संश्लेष लक्षण बन्ध होने पर हि अणुक नामक स्कन्ध बनता है। इसी प्रकार संख्यात असंख्यात और अनन्त प्रदेश वाले स्कन्ध उत्पन्न होते हैं। स्निग्ध गुण के एक, दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनन्त भेद हैं। इसी प्रकार रूक्ष गुण के भी एक, दो, तीन, चार, संख्यात, प्रसंख्यात और अनन्त भेद है। जिस प्रकार जल, बकरी के दूध, गाय, भैंस और ऊँट के दूध और घी में उत्तरोत्तर अधिक रूप से स्नेह गुण रहता है तथा पांशु, कणिका और शर्करा भादि में न्यून रूप से रूक्ष गुण रहता है, उसी प्रकार परमाणुओं में भी न्यूनाधिक रूप से स्निग्ध और रुक्ष गुग्ग का अनुमान होता है । २
शङ्का - संश्लेप बन्ध का क्या लक्षण है ?
समाधान जतु (लाख) और काष्ठ के परस्पर संश्लेष से जो बन्ध होता है वह संश्लेष बन्ध है । जलु पद से वज्रलेप श्रौर मैन आदि चिक्कण द्रव्यों का ग्रहण होता है । "
शंका- एक गुण को जघन्य गुण कहा है तो उस जघन्य गुरण का क्या एक प्रमाण है ?
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समाधान नहीं, वह जघन्य गुण अनन्त यविभाग प्रतिच्छेदों से निष्पन्न होता है।" शङ्का - श्रविभागप्रतिच्छेद किसे कहते हैं ?
समाधान - एक परमाणु में जो जघन्य वृद्धि होती है, यह अविभाग प्रतिच्छेद है । इस प्रमाण से ( विभाग प्रतिच्छेद से ) परमाणु के जघन्य गुण अथवा उत्कृष्ट गुण छेद करने पर सब जीवों से अनन्तगुणे श्रनन्त श्रविभाग प्रतिच्छेद प्राप्त होते हैं । *
शङ्का - यदि अनन्त प्रविभाग प्रतिच्छेदों से युक्त जघन्य गुण में 'एक गुण' शब्द प्रवृत्त रहता है तो दो जघन्य गुणों में 'दो गुगा' शब्द की प्रवृत्ति होनी चाहिए, अन्यथा 'दो' शब्द की प्रवृत्ति नहीं उपलब्ध होती ?
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१. स्निग्वरूक्षत्वाद् बन्धः ||५ / ३३ | | | त सू.] २. सर्वार्थमि५ि/३६ । ३. धवन पू. १४ पृ. ४१ । ४. धवन पु. १४ पृ. ४५० । ४. धवल पु. १४ पृ. ४६१ ।
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