Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६१८ / गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ५५३ - ५५४
कालेश्या में विद्यमान जीव के विश्वाकाल धाप हो जाने से पतले हो गई । उसमें अन्तर्मुहूर्त रहकर मरा और सौधर्म कल्प में उत्पन्न हुआ अढ़ाई सागरोपम काल तक जीवित रहकर च्युत हुआ । अन्तर्मुहूर्त काल तक पीत लेश्या सहित रहकर अन्य प्रविरुद्ध लेश्या में चला गया। इसी प्रकार पद्मव शुक्ल लेश्याओं सहित सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त रहकर पुनः साढ़े अठारह व तैंतीस सागरोपम आयु स्थिति वाले देवों में उत्पन्न होकर अपनी-अपनी आयु स्थिति को पूरी करके वहीं से निकलकर अन्तर्मुहूर्त काल तक पद्म व शुक्ल लेश्या सहित रहकर अन्य अविरुद्ध लेश्या में गये हुए जीव के अपनाअपना उत्कृष्ट काल प्राप्त हो जाता है ।"
वेश्याओं में जघन्य व उत्कृष्ट अन्तर
अंतरravarti किहतियाणं मुहुसतं तु ।
उवहीणं तेत्तीसं प्रहियं होवित्ति गिट्ठि ।। ५५३ ।। उतियाणं एवं वरि य उक्कस्स विरहकालो दु ।
पोगल रिबट्टा हु असंखेज्जा होंति गियमेण ।। ५५४ ||
गाथार्थ - कृष्ण आदि तीन अशुभ लेश्याओं का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक तैंतीस सागर है । पीत यादि तीन शुभ लेमयाओं का अन्तर भी इसी प्रकार है किन्तु उत्कृष्ट अन्तर नियम से श्रसंख्यात पुद्गल परिवर्तन है ।।५५३-५५४।।
कृष्ण, नील और कापोत लेश्यात्राले जीवों का जघन्य अन्तर काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि कृष्ण लेश्यावाले जीव के नीललेश्या में, नीललेश्या वाले जीव के कापोत लेश्या में व कापोतलेश्या वाले जीव के तेजोलेश्या में जाकर अपनी पूर्व लेश्या में जघन्य काल के द्वारा पुनः वापिस आने से अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अन्तर पाया जाता है ।
कृष्ण, नील और कापोत लेग्यावाले जीवों का उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक तंतीस सागरोपम प्रमाण होता है, क्योंकि एक पूर्व कोटि की आयु वाला मनुष्य गर्भ से आदि लेकर ग्राठ वर्ष के भीतर छह अन्तर्मुहूर्त शेष रहने पर कृष्ण लेश्या रूप परिणाम को प्राप्त हुआ । इस प्रकार कृष्ण लेश्या का प्रारम्भ कर पुनः नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याओं में परिपाटी क्रम से जाकर अन्तर करता हुआ, संयम ग्रहण कर तीन शुभ लेश्याओं में कुछ कम पूर्व कोटी काल प्रमाण रहा और फिर तैंतीस सागरोपम श्रायुस्थिति वाले देवों में उत्पन्न हुआ। वहाँ से आकर मनुष्यों में उत्पन्न होकर शुक्ल पद्म तेज काशेत और नील लेश्या रूप क्रम से परिणमित हुआ और अन्त में कृष्ण लेश्या आ गया । ऐसे जीव के दश अन्तर्मुहुर्त कम आठ वर्ष से हीन पूर्व कोटि अधिक तैंतीस सागरोपम प्रमाण कृष्ण लेण्या का उत्कृष्ट अन्तरकाल प्राप्त होता है। इसी प्रकार नील लेश्या और कापोत लेश्या के उत्कृष्ट अन्तर काल का प्ररूपण करना चाहिए। विशेषता केवल इतनी है कि नील लेश्या का अन्तर कहते समय आठ और कापोत लेश्या का अन्तर कहते समय छह अन्तर्मुहूर्त क्रम प्राठ वर्ष से हीन पूर्व कोटि अधिक तैंतीस सागरोपम प्रमाण अन्तर काल बतलाना चाहिए |
१. धवल पु. ७ पृ. १७६ । २. धवल पु. ७ पृ. २२८-२२१ ।