Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
नामा ५६५-५६७
मम्यक्त्वमार्गा/६३१
उपलक्षणानुवाद उबजोगो वरण चक लक्खरणमिह जीवपोग्गलारणं तु । गदिठारगोग्गह-वसरएकिरियुवयारो दु धम्मचऊ ॥५६॥ गविधागोमहकिरिया जवाण महाराभव हये । धम्मतिये रणहि किरिया मुक्खा पुण साधका होंति ॥५६६॥ जत्तस्स पहं ठत्तस्स पासणं रिणवसगस्स बसवी था । गदिठारगोग्गहकरणे धम्मतियं साधगं होदि ॥५६७।।
गाथार्थ – जीव का लक्षण उपयोग है। पुद्गल का लक्षण वर्णचतुष्क है । धर्मादि चार द्रव्यों का लक्षण गतिहेतुत्व, स्थितिहेतुत्व, अवगाहनहेतुत्व और बर्तनाहेतृत्व है।।५६॥ गतित्रिया, स्थितिक्रिया, अवगाहन क्रिया ये तीन क्रिया जीव ब पुद्गलों में ही होती हैं। धर्मादि में ये क्रियाएं नहीं होती किन्तु वे साधक होते हैं ।।५६६॥ पथिक को मार्ग, तिष्ठने वाले (ठहरने वाले) को प्रासन और निवास करने वाले को मकान जिस प्रकार साधक होते हैं, उसी प्रकार गति, स्थिति और अवगाह में धर्मादि तीन द्रव्य साधक होते हैं ॥५६७॥
विशेषार्थ–उपयोग जीव का लक्षण है।" शंका-उपयोग किसे कहते हैं ?
समाधान-जो अन्तरंग और बहिरंग दोनों प्रकार के निमित्तों से होता है और चतन्य का अन्वयी है, चैतन्य को छोड़कर अन्यत्र नहीं रहता, वह परिणाम उपयोग है। जो चैनन्य गुरण के साथ-साथ अन्वय रूप से परिणमन करे, सो उपयोग है।
1
शंका- अन्तरंग और बहिरंग निमित्त कौन-कौन से हैं ?
समाधान-- ज्ञानावरण, दर्शनावरण और वीर्यान्तराय कर्म का क्षयोपणम अन्तरंग निमित्त है। चक्षु आदि इन्द्रियों और प्रदीप आदि बाह्य निमित्त हैं ।
शंका- लक्षण किसे कहते हैं ?
समाधान-परस्पर सम्मिलित वस्तुओं में से जिसके द्वारा किसी वस्तु का पृथक्करण हो वह उसका लक्षण होता है। जैसे सोना और चांदी को मिली हुई डली में पीला रंग, भारीपन अादि उन सोने चांदी का भेदक होता है, उसी प्रकार शरीर और प्रात्मा में बन्ध की दृष्टि से परस्पर एकत्व होने पर भी ज्ञानादि उपयोग उसके भेदक लक्षण होते हैं।
१. " उपयोगो लक्षणम् ।।२।८।।" [त. सू.] २. "उभयनिमितवशादुत्पद्यपानचंतन्यानुविधायी परिगाम: उपयोगः ।" [सर्वार्थमिद्धि । ३. "चैतन्य मनुबिदधात्यन्वयरूपेण परिगामति ।" [पंचास्तिकाय गाथा ४० तात्पर्यवृत्ति टोका