Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६६६/गो. मा. जीवकाण्ड
गाथा ५६४-५६५
कुछ कम पूर्व कोटि काल तक प्रौदारिक और तंजमशरीर की अध:स्थितिगलना के द्वारा पूरी निर्जरा करके तथा कार्मण शरीर की गुमाश्रेणी निर्जरा करके अन्तिम समयवर्ती भव्य हो गया। इस प्रकार प्राकर जो प्रयोगकेवली के अन्तिम समय में स्थित है, उसके सबसे जघन्य प्रत्येक शरोर द्रव्य वर्गग्गा होती है। क्योंकि इसके शरीर में निगोद जीवों का अभाव है।
गुरिणत कर्माशिक नारकी जीव के अन्तिम समय में सर्वोत्कृष्ट द्रव्य के प्राप्त होने तक कामण शरीर के दोनों पुजों को उत्कृष्ट करना चाहिए।
शंका-बक्रियिक शरीर के विस्नसोपचय से ग्राहारक शरीर का विस्रसोपचय असंख्यातगुरणा है, इसलिए प्रमत्तसंयत गुणस्थान में आहारक, तेजस और कार्मण शरीर के छह पुञ्ज ग्रहण करके प्रत्येक शरीर वर्गणा एक जीव सम्बन्धी क्यों नहीं कही?
समाधान- नहीं, क्योंकि मतिम समयवर्ती नारनी दोघोड़कर तेजस और नामरण शरीर का अन्यत्र उत्कृष्ट द्रव्य उपलब्ध नहीं होता । जहाँ पर तेजस और कामगा शरीर जघन्य होते हैं वहाँ पर प्रत्येक शरीर द्रव्यवर्गणा सबसे जघन्य होती है और जहाँ पर इनका उत्कृष्ट द्रव्य उपलब्ध होता है वहाँ पर प्रत्येक शरीर वर्गणा उत्कृष्ट होती है। परन्तु प्रमत्तसंयत मनुष्य के प्रत्येकशरीर वर्गणा उत्कृष्ट नहीं होती, क्योंकि उनके गुणधेरणी निर्जरा के द्वारा और अध:स्थितिगलना के द्वारा तेजस ब कार्मण शरीर का द्रव्य गलित हो जाता है। यदि व-हा जाय कि गलित हुए तैजस और कामश शरीर के द्रव्य से प्राहारक शरीर की द्रव्य वर्ग रणाएं बहुत होती हैं, सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि यह उनके अनन्तवं भाग प्रमाण होता है। अतः प्रमत्तसंयत गुणस्थान में प्रत्येक शरीर वर्गणा उत्कृष्ट नहीं होती।
यहाँ पर कर्मस्थिति-काल के भीतर संचित हुए पाठ प्रकार के कर्मप्रदेणसमुदाय की कामगाशरीर संज्ञा है । छयासठ सागर काल के भीतर संचित हुए नोक.मंप्रदेश समुदाय की तैजस शरीर संज्ञा है। तैंतीस सागर काल के भीतर संचित हुए नोकर्मप्रदेश समुदाय की वैऋियिक गरीर संज्ञा है। क्षुल्लक भव ग्रहण काल से लेकर तीन पल्य काल के भीतर संचित हुए नोकर्मप्रदेश समुदाय की ग्रौदारिका शरीर संज्ञा है। और अन्तमुहुर्त काल के भीतर संचित हुए नोकर्मप्रदेश समुदाय की आहारक शरीर संजा है। इसलिए नारकी जीव के अन्तिम समय में ही उत्कृष्ट स्वामित्व देना नाहिए।' यह सत्रहवीं वर्गणा है ।१५।
उत्कृष्ट प्रत्येक शरीर धर्गणा में एक अंक मिलाने पर दुसरी ध्र वशुन्य वर्गणा सम्बन्धी सबसे जघन्य ध्र बशुन्य द्रव्य बगंगा होती है। अमन्तर एक-एक अधिक के क्रम से आनुपूर्वी से सब जीवों से अनन्तगुणी न वशुन्य वर्गणाओं के जाने पर उत्कृष्ट ध्र वशून्य वर्गणा उत्पन्न होती है। बह जघन्य वर्गणा से अनन्तगुणी है । सब जीवों का असंख्यातवाँ भाग गुणाकार है। एकान्तवादी दृष्टि के समान यह सदाकाल शुन्य रूप से अवस्थित है। यह अठारहवीं वर्गणा है ।१८।७
--- १. धवल पु. १४ पृ. .५-६६। २. व ३. पबल पु. १४ पृ. ७७ । ४. धवल पु १४ पृ. ७७-७८ 1 ५. धवल पु. १४ पृ. ७८ । ६. धवल पु. १४ पृ. ८३ । ७. धवल पु. १४ पृ. ८४ ।