Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
गाथा ६०५-६०८
सम्यक्त्वमार्गग्गा/६७३
शंका-ये तीन प्रकार की आहारवर्गणाएँ क्या परस्पर समान हैं या हीनाधिक प्रदेश वाली
समाधान--श्रीदारिक शरीर द्रव्यवर्गणाएँ प्रदेशार्थता की अपेक्षा सबसे स्तोक है। १७८५।। वैक्रियिक शरीर द्रव्य वर्गणाएँ प्रदेशार्थता की अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ।।७६६।। आहारकशरीर द्रव्यवर्गणाएँ प्रदेशार्थता की अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ।।७८७|| एक ही समय में एक ही योग से आगमन योग्य वर्गणाओं की अपेक्षा से यह कथन है, क्योंकि तीन जीवों के एक ही समय में एक योग सम्भव है।' इससे जाना जाता है कि इन तीनों शरीरों में प्रदेश समान नहीं है । कहा भी है
"प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात् ॥२॥३८॥" [तत्त्वार्थसूत्र] ... तैजस शरीर से पूर्व प्रौदारिक, वैऋियिक, आहारक इन तीन शरीरों में आगे-मागे का शरीर प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा है ।
अवगाहना की अपेक्षा कार्मणशरीर द्रव्यवर्गणाएँ सबसे स्तोक हैं ॥७६०।। मनोद्रव्य वर्गणाएँ अवगाहना की अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ।।७६१।। भाषा द्रव्य वर्गणाएं अवगाहना की अपेक्षा असंख्यात गुगगी हैं ।।३६२।। तैजस शरीर द्रव्य वर्गणाएँ अबगाहना की अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ।।७६३।। आहारक शरीर द्रव्य वर्गणाएँ अवगाहना की अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ।।७६४।। वैऋियिक शरीर की द्रव्यावर्गमा अवगाहना की अपेक्षा अवगत गी है १७६५।। प्रौदारिक शरीर द्रव्य वर्गणाएँ अवगाहना की अपेक्षा असंख्यातगुणी हैं ।।७६६।२
शङ्का--इन तीन शरोरों की वर्गणाएं अवगाहना के भेद से और संख्या के भेद से पृथक्-पृथक हैं नो आहार वर्गणा एक ही है, ऐसा क्यों ?
समाधान- नहीं, क्योंकि अग्रहण वर्गणानों के द्वारा अन्तर के प्रभाव की अपेक्षा इन वर्गणाओं के एकत्व का उपदेश दिया गया है।"
शङ्का-कार्मण शरीर का कोई प्राकार नहीं पाया जाता अतः उसे पौद्गलिक मानना युक्त नहीं है?
समाधान - नहीं, कार्मण शरीर भी पौद्गलिक है, क्योंकि उसका फल मूर्तिमान् पदार्थों के सम्बन्ध से होता है । जिस प्रकार जलादिक के सम्बन्ध से पकने वाले धान अादि पौद्गलिया हैं, उसी प्रकार कार्मणशरीर भी गुड़ व क्राटे प्रादि मूतिमान पदार्थों के मिलने पर फल देते हैं। अतः कार्मणशरीर पौद्गलिक है ।
वचन दो प्रकार का है द्रव्य वचन और भाव वचन । इनमें से भाववचन वीर्यान्तराय और मतिज्ञानावरण तथा श्रुतज्ञानावरण कर्मों के क्षयोपशम और अंगोपांग नामकर्म के निमित्त से होता है इसलिए वह पौद्गलिक है; क्योंकि पुद्गलों के अभाव में भाववचन का मुद्भाव नहीं पाया जाता है ।
२. धवल पु. १४ पृ. ५६२-५६४ ।
३. धवल पृ. १४ पृ. ५४७ ।
१. धबल पु. १४ पृ. ५६०-५६१ । ४. सर्वार्थ सिद्धि ५/१६ ।