Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ६०५- ६०८
सम्यकत्रमागंगा/ ६०१
का प्राधा 'देश' है । स्कन्ध के आधे के साधे को प्रदेश कहते हैं। इस प्रकार यात्रा-यात्रा तब तक करते जाना चाहिए जब तक द्विग्रस्य प्राप्त हो, सब मे प्रदेश हैं । परमाणु निरंश है जिसका विभाग नहीं हो सकता, इसलिए परमाणु को द्रव्याथिक नय में प्रतिभागी कहा है ।"
स्वन्ध की आधी स्कन्धदेश नामक पर्याय है, आधी की आधी स्कन्धप्रदेश नाम की पर्याय है । इस प्रकार भेद के कारण द्वि-अणुक स्कन्ध पर्यन्त ग्रनन्त स्कन्ध्रप्रदेशरूप पर्याये होती है। निर्विभाग एक प्रदेशवाला, स्कन्ध का अन्तिम अंश एक परमाणु है ।
श्री जयसेन श्राचार्य ने इसको दृष्टान्त द्वारा समझाया है - जैसे १६ परमाणुओं को पिण्ड रूप करके एक स्कन्ध बना। इसमें एक-एक परमाणु घटाते हुए नब परमाणुओं के स्कन्ध तक स्कन्ध के ही भेद होंगे अर्थात् नो परमाणुओं का जघन्य स्कन्ध और सोलह परमाणुओं का उत्कृष्ट स्कन्ध, शेष मध्य के भेद जानने । श्राट परमाणुयों के पिण्ड को स्कन्धदेश कहेंगे क्योंकि वह सोलह से श्राधा रह गया। इसमें भी एक-एक परमाणु घटाते हुए पाँव परमाणु स्कन्ध तक स्कन्धदेश के भेद होंगे। उनमें जघन्यस्कन्धदेश पांच परमाणुओं का तथा उत्कृष्टस्कन्धदेश आठ परमाणुओं का व मध्य के अनेक भेद हैं। चार परमाणुयों के पिण्ड की स्कन्धप्रदेश संज्ञा है। इसमें भी एक-एक परमाणु घटाते हुए दो परमाणु स्वन्ध तक प्रदेश के क्षेत्र हैं । अर्थात् जघन्य स्कन्ध- प्रदेश दो परमाणु स्कन्ध- प्रदेश है, उत्कृष्ट चार परमाणु स्कन्ध प्रदेश है । मध्य तीन परमाणु का स्वध प्रदेश है । ये सब स्कन्ध के भेद हैं । सबसे छोटे विभाग रहित पुद्गल को परमाणु कहते हैं। "
asों द्रव्यों का फलाधिकार अर्थात् उपकार
गारोह किरियासाधरणभूदं खु होदि धम्मतियं । वत्तरण किरियासाहरणभूदो यि मेर कालो दु ।।६०५ ।। प्रोष्णुवयारेण य जीवा वट्टति पुग्गलारिण पुरणो । देहावीरिणव्वत्तकारणभूदा हु पियमे ।। ६०६ ।। *
श्राहारवग्गणादो तिथि सरीराति होंति गुस्सा सोवि य तेजोवग्गणबंधातु भासमरणवग्गगावो कमेण भासा मरणं च कम्मादो | प्रदुषिहम्मदम्वं होबित्ति जिहि गिहि ||६०८ ||
उत्सासो ।
गाथार्थ - धर्मादि तीन द्रव्य गति, स्थिति और अवगाह इन क्रियाओं के वर्तन क्रिया का साधनभूत नियम से काल द्रव्य है ||६०५ || जीव परस्पर एक करते हैं और पुद्गल द्रव्य नियम से शरीर यादि की रचना का वर्गणा से तीन शरीर और श्वासोच्छ्वास बनते हैं। तेजोवर्गणा रूप स्कन्ध से तेजस शरीर बनना
साधनभूत होते हैं 1 दूसरे का उपकार कारगाभूत हैं ||६०६ ।। प्राहार
१. मूलाचार ५।३४ की टीका । को तात्पर्य वृत्ति टीका ।
२. पंचास्तिकाय गाथा ७५ समयव्याख्या टीका । ४. व ४. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा मा २०६ की टीका ।
तेजंग ||६०७।। *
३. पंचास्तिकाय मा