Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ५६४-५६५
मम्यक्त्व मागंगा/६६५
अनन्तर एक-एक अधिक के क्रम से सब जीवों से अनन्तगुणे स्थान जाकर ध्र वस्कन्ध द्रव्यवर्गणा सम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है । अपने जघन्य से अपनी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है। सब जीवों से अनन्तगुणा गुणाकार है। यह ध्र वस्कन्ध पद का निर्देश अन्त्यदीपक है। इससे पिछली सब वर्गणायें ध्र व ही हैं। यह सौर इससे आगे की सब वर्गणा ग्रहण योग्य नहीं हैं। यह चौदहवीं वर्गरणा है ।१४
भ्र वस्कन्ध द्रव्यवर्गणाओं के ऊपर सान्तर-निरातर द्रव्यवगणा है। जी वर्गणा अन्तर के साथ निरन्तर जाती है उसको सान्तर-निरन्तर द्रव्यवगरणा संज्ञा है। यह सार्थक संज्ञा है । उत्कृष्ट ध्र वस्कन्ध द्रव्य वर्गणा में एक अंक के मिलाने पर जघन्य सान्तर-निरन्तर द्रव्यवर्गणा होती है। आगे एक-एक अंक के अधिक क्रम से सब जीवों से अनन्तगुणे स्थान जाकर सात्तर-निरन्तर द्रव्यवर्गणा सम्बन्धी उत्कृष्ट वर्गणा होती है । वह अपनी जघन्य वर्गणा से अचनी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है । सब जीवों से अनन्तगुरणा गुणाकार है । यह भी अग्रहण बर्गणा ही है. क्योंकि आहार, तेजस, भाषा, मन और कर्म के अयोग्य है । यह पन्द्रहवीं वर्गरणा है ।१५।।
सान्त रनिरन्तर द्रव्यवर्गणानों के ऊपर ध्र व शून्य वर्गशा है । अतीत, अनागत और वर्तमान काल में इस रूप से परमाणु पुद्गलों का संचय नहीं होता, इसलिए इसकी ध्र वशून्य द्रव्य वर्गणा यह सार्थक संज्ञा है । उत्कृष्ट सान्तर निरन्तर द्रव्य वर्गणा के ऊपर एक परमाणु अधिक परमाणु पुदगलस्कन्ध तीनों ही काल में नहीं होता । दो प्रदेश अधिक तीन प्रदेश अधिक प्रादि के क्रम से सब जीवों से अनन्तगुरणं स्थान जाकर प्रथम ध्र वशून्य वर्गणा सम्बन्धी उत्कृष्ट बर्गरणा होती है। यह अपनी जघन्य वर्गणा से अपनी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्तगुणी है। सब जीवों से अनन्तगुरगा गुणाकार है । यह वर्गणा सर्वदा शून्य रूप से अवस्थित है । यह सोलहवीं वर्गणा है ।१६।
भ्र बशून्य द्रव्य वर्गणा के ऊपर प्रत्येक शरीर द्रव्य वर्गणा है ।।११।।
एक-एक जीव के एक-एक शरीर में उपचित हुए कर्म और नोकर्म स्कन्धों की प्रत्येक शरीर द्रव्यवर्गणा संज्ञा है। अब उत्कृष्ट ध्र वशून्य द्रव्य वर्गणा में एक अंक मिलाने पर जघन्य प्रत्येक शरीर द्रव्यत्रणा होती है।
शंका -- यह जघन्य प्रत्येक शरीर द्रव्यवर्गणा किसके होती है ?
समाधान जो जीव सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तकों में पल्य का प्रसंख्यातवाँ भाग कम कर्मस्थितिकाल तक क्षपित कर्माशिक रूप से रहा, पुनः जिसने पल्य के असंख्यात भाग प्रमाण संयमासंयम काण्डक, इनसे कुछ अधिक सम्यक्त्व काण्डक तथा अनन्तानबन्धी विसंयोजना काण्डक तथा पाठ संयम काण्डक करते हुए चार बार कपाय की उपशमना की। पुनः अन्तिम भव को ग्रहण करते हुए पूर्व कोटि प्रमाण आयुबाले मनुष्यों में उत्पन्न हुा । अनन्तर गर्भ-निष्क्रमण काल से लेकर पाठ वर्ष और अन्तर्मुहूर्त का होने पर सम्यक्त्व और संयम को एक साथ प्राप्त करके सयोगी जिन हो गया । अनन्तर
१. धन पु. १४ ए. ६४। १४५.६५।
२. धवल पु. १४ पृ. ६४-६५।
३. धवल पु. १४ पृ. ६५।
४. धवल पु.