Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६३६/मो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ५६५-५६७
-लोक में जीवों को और पुद्गलों को और शेष धर्म अधर्म और काल द्रव्यों को जो सम्पूर्ण अवकाश देता है वह आकाश है।
"प्राकाशस्यावगाहः ॥१८॥"' अवकाश देना प्रकाश का उपकार है।
शङ्का अवगाहन स्वभाव बाले जीव और पुद्गल क्रियावान् हैं, इसलिए इनको अवकाशा देना युक्त है, परन्तु धर्मादिक द्रव्य निष्क्रिय और सदा सम्बन्ध वाले हैं इसलिए उनका अवगाह कसे बन सकता है ?
समाधान----नहीं, क्योंकि उपचार से इसकी सिद्धि होती है। जैसे गमन नहीं करने पर भी प्राकाश सर्वगत कहा जाता है, क्योंकि वह सर्वत्र पाया जाता है। इसी प्रकार यद्यपि धर्म और अधर्म द्रव्य में अवगाह रूप क्रिया नहीं पायो जाती तो भी लोकाकाश में वे सर्वत्र व्याप्त हैं अत: वे अबगाही हैं ऐसा उपचार कर लिया जाता है ।
शङ्का--यदि अवकाण देना आकाग का स्वभाव है तो वज्रादिक से लोढ़ा ग्रादिक का पौर भीतादिक से गाय प्रादिक का व्याघात नहीं प्राप्त होता है, किन्तु व्याघात तो देखा जाता है इससे ज्ञात होता है कि अवकाश देना अाकाश का स्वभाव नहीं ठहरता?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि बच और लोढ़ा आदिक स्थूल पदार्थ हैंइसलिए उनका मापस में व्याघात होता है, अतः अाकाश का अवकाश देने रूप सामर्थ्य नहीं नष्ट होता । वजादिक स्थूल पदार्थ हैं, इसलिए वे परस्पर अवकाश नहीं देते, यह आकाश का दोष नहीं है । जो पुद्गल सूक्ष्म होते हैं वे परस्पर अबकाश देते हैं।
शङ्कर--- यदि ऐसा है तो अवकाश देना आकाश का असाधारण लक्षण नहीं रहता, क्योंकि दूसरे पदार्थों में भी इसका सद्भाव पाया जाता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि आकाश द्रव्य सब पदार्थों को अवकाश देने में साधारण कारण है, यही इसका असाधारण लक्षण है, इसलिए कोई दोष नहीं है ।
शङ्का--अलोकाकाश में अवकाशदान रूप स्वभाव नहीं पाया जाता, इससे ज्ञात होता है कि यह आकाश का स्वभाव नहीं है ?
समाधान- नहीं, कोई भी द्रव्य अपने स्वभाव का त्याग नहीं करता है।
शा-यह लोक तो असंख्यातप्रदेशी है। परन्तु इस लोक में अनन्तानन्त जीव हैं उनसे भी अनन्तगुरणे पुद्गल हैं । लोकाकाश के प्रदेशों के प्रमाण भिन्न-भिन्न कालाणु हैं तथा एक धर्म और एक अधर्म द्रव्य है, ये लय किम तरह इस लोक में अवकाश पाते हैं ?
१. लत्त्वार्थमूत्र अध्याय ५। २. सर्वार्थ सिद्धि ५/१८ ।