Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ५७५ ५७६
सम्यक्त्रमार्गगा ६४७
सिद्धराशि को संख्यात प्रावलियों से गुणा करने पर अतीत का प्रमाण होता है ।। ५७८ || वर्तमान काल समय मात्र है | सर्व जीवों से और समस्त पुद्गलों से अनन्तगुणा भविष्यत् काल है। ये तीनों व्यवहार काल हैं ॥ ५७६ ||
विशेषायं प्रतीत काल, भविष्यत्काल और वर्तमानकाल इस प्रकार व्यवहार काल तीन प्रकार का है। अतीतकाल की पर्यायें तो व्यय को प्राप्त (नाश) हो चुकी हैं। भविष्यत्काल की पर्यायें होंगी, अभी अनुत्पन्न हैं। वर्तमान काल की एक समय मात्र पर्याय विद्यमान है । यद्यपि अतीत, अनागत और वर्तमान की अपेक्षा काल तीन प्रकार का है तथापि गुणस्थिति काल, भवस्थिति काल, कर्मस्थिति काल, कार्यस्थिति काल, उपपादकाल और भावस्थिति काल की अपेक्षा व्यवहार काल छह प्रकार का है । अथवा काल अनेक प्रकार का है, क्योंकि परिणामों से पृथग्भूत काल का प्रभाव है तथा परिणाम अनन्त पाये जाते हैं ।
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अतीत काल के प्रमाण का कथन करते हुए श्री कुन्दकुन्द प्राचार्य ने भी नियमसार में इसी प्रकार कहा है- " तीवो संखेज्जावलिहसिद्धा माणं तु ।" गा. ३१ उत्तरा ॥ अर्थात् सिद्ध जीवों का जितना प्रमाण है उसको संख्यात मावलियों से गुणित करने पर जो प्राप्त हो उतना अतीत काल है। मिद्धराशि मनन्त है, उससे असंख्यात गुग्गा अतीत काल है, जो प्रनन्त है ।
शंका- प्रतीत काल सिद्धराशि से असंख्यात गुणा क्यों कहा
?
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समाधान-गाथा में सिद्धराशि को संख्यात प्रावलियों से गुणा करने पर प्रतीतकाल का प्रमाण प्राप्त होता है, ऐसा कहा है एक आवली में जघन्य युक्तासंख्यात समय होते हैं । युक्तासंस्यात समयों से संख्यात श्रावलियों को गुणित करने पर लब्ध प्रसंख्यात समय प्राप्त होते हैं । अतः समयों की अपेक्षा सिद्धों से श्रसंख्यात गुणा प्रतीत काल है। प्रावली की अपेक्षा सिद्धराशि को संख्यात श्रावलियों से गुणा किया जाता है। कहा भी है
"तश्रातीतः संख्यातावलिगुणित सिद्धरा शिर्भवति ।" [ स्वा. का. अ. गा. २२१ टीका ]
संख्यात प्रावली गुणित सिद्धराशि अतीत काल का प्रमाण है ।
शंका- संख्यात ग्रावलियों से सिद्धराशि को क्यों गुरणा किया ?
समाधान- क्योंकि सिद्धराशि को संख्यात प्रावलियों से गुणा करने पर लब्ध अनन्त आता है जो कि अतीत काल के समयों प्रमाण है। स्पष्टीकरण इस प्रकार है ---
चूंकि ६०८ जीवों को मोक्ष जाने में ६ मास समय व्यतीत हुआ,
६ मास ५ समय
व्यतीत हुआ,
तो एक जीत्र को मोक्ष जाने में
६०८
१. प्रमाद या असावधानीवश लेखक से नियमसार में 'सिद्धाण' के स्थान पर 'सारा' लिखा गया जिसकी परम्परा अब तक चली आ रही है। क्योंकि संस्थान को संख्यात प्रावलियों से गुणा करने पर अतीत काल कर प्रमाण नहीं प्राप्त होता । र च. मुख्तार