Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६४८/गो. सा. जीवनात
गापा ५७८-५.७६
६ मास ८ समय १ सिद्ध संख्यातनावलीx सिद्ध अतः बर्तमान सिद्धकोमोक्ष जाने में .-..-------------.-...-.-=अतीत काल
६०८१ (इतना काल व्यतीत हुग्रा)
इससे कम या अधिक अतीत काल हो नहीं सकता क्योंकि ६ मास = समय में ६०८ के मोक्ष जाने का क्रम अतीत काल में सदा नियत रहा है। अत: अतीतकाल का प्रमाण = ६ मास ८ समय सिद्धराशि --- ------ ही सुनिश्चित है और वह संख्यात प्राबलो - सिद्धराशि प्रमित है।
जो वर्तमान एक समय है वही वर्तमान काल है। क्योंकि वर्तमान एक समय से जो पूर्व के समय हैं, वे तो अतीत काल रूप काल है। वर्तमान समय से जो अनागत काल है वह भविष्यत् काल है । प्रतः वर्तमान काल एक समय मात्र है । कहा भी है--
तेस प्रतीदा जंता प्रपंत-गृरिणदाय भावि-पज्जाया। एक्को वि बट्टमाणो एत्तिय-मेत्तो वि सो कालो ॥२२१॥
[स्वा. का. अ.] अतीत काल अनन्त है जो सिद्धराशि गुणित छह पाबली प्रमाण अर्थात जीवराशि के अनन्त भाग प्रमाण है । अनागत (भविष्यत्) काल उससे अनन्त गुणा है, क्योंकि सर्व जीवराशि से अनन्तगुणी पुद्गल राशि, उससे भी अनन्तगुणा काल है । एक समय मात्र वर्तमान काल है इतना व्यवहार काल
शा-अतीत काल जीवराशि के अनन्तवें भाग है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान—सिद्धराशि से असंख्यात गुणा अतीत काल है, किन्तु जोवराशि सिद्धराणि से अनन्त गुणी है । इससे सिद्ध होता है कि अतीत काल जीबराशि के अनन्तवें भाग है ।
शङ्का-जीवराशि से अनन्तगुणी पुद्गल राशि है, उससे भी अनन्तगुणा काल है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान—यह पार्ष वाक्यों से जाना जाता है, जो इस प्रकार है-'सरबजीवरासी वग्गिजमारणा बग्गिज्जमाणा प्रतलोगमेत्तबम्गरणद्वारमाणि उरि गंतुरण सध्य पोग्गलदरवं पावदि । पुणो सयपोग्गलवग्वं यग्गिाजमाणं वग्गिज्जमाणं प्रणतलोगमेसवग्गणढाणाणि उवरि गंतूण सव्वकालं पाववि ।" [धवल पु. १३ पृ. २६२-२६३]
सब जीवराणि का उत्तरोत्तर वर्ग करने पर अनन्त लोकप्रमाण वर्गस्थान आगे जाकर सब पुद्गल द्रव्य प्राप्त होता है । पुनः सब पुद्गल द्रव्य का उत्तरोत्तर वर्ग करने पर अनन्त लोमात्र वर्गस्थान प्रागे जाकर सब काल प्राप्त होता है ।
इस सर्वकाल में से जीवराशि के अनन्तवें भाग प्रमाण अनीत कान्न यो घटा देने पर भविष्यत् काल शेष रह जाता है जो प्रतीत काल, गर्व जीवराशि ब पृद्गल राशि से अनन्त गुणा होता है।