Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६६२/गो. सा. जीयकाण्ड
गाथा ५६४-५६५
समाधान नहीं, क्योंकि परमाणुओं का पुद्गल रूप से उत्पाद और विनाश नहीं होना, इसलिए उनमें भी द्रव्यपना सिद्ध होता है ।।
इसके ऊपर द्विप्रदेशी परमाणु पुद्गल द्रव्य वर्गणा है।।५.७॥२ अजघन्य स्निग्ध और रूक्ष गुण वाले दो परमाणुओं के समुदाय समागम से द्विप्रदेशी परमाणु पुद्गल द्रव्य वर्गणा होती है।
शंका-परमाणुनों का समागम क्या एकदेशेन होता है या सर्वात्मना होता है ?
समाधान-द्रध्याथिक नय का अबलम्बन करने पर दो परमाणुओं का कथंचित् सर्वात्मना समागम होता है, क्योंकि परमाणु निरवयव होता है। पर्यायाथिक नय का अवलम्बन करने पर कथंचित् एकदेशेन समागम होता है। परमाणु के अवयव नहीं होते, यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि यदि उपरिम. अधस्तन, मध्यम और उपरिमोपरिम भाग न हो तो परमाणु का ही प्रभाव होता है। ये भाग कल्पित भी नहीं हैं, क्योंकि परमाणु में ऊवभाग, अधोभाग और मध्यमभाग तथा उपरिमोपरिमभाग कल्पना के बिना भी उपलब्ध होते हैं। तथा परमाणु के अवयव हैं इसलिए उनका सर्वत्र विभाग ही होना चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर तो सब बस्तनों के अभाव का प्रसंग प्राप्त होता है । अवयवों से परमाणु नहीं बना है, ऐसा कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि अवयवों के समूह रूप ही परमाणु दिखाई देता है । तथा अवयवों के संयोग का विनाश होना चाहिए ऐसा भी कोई नियम नहीं है, क्योंकि अनादिसंयोग के होने पर उसका विनाश नहीं होता । इसीलिए द्विप्रदेशीपरमाणु पुद्गल द्रव्य वर्गणा सिद्ध होती है ।
__ इसी प्रकार त्रिप्रदेशी, चतुःप्रदेशी, पञ्चप्रदेशी, षट्प्रदेणी, सप्तप्रदेशी, अष्टप्रदेशी, नवप्रदेशी, दशप्रदेशी, संख्यात प्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी, अनन्तप्रदेशी और अनन्तानन्तप्रदेशी परमाण पुद्गल द्रव्यवर्गणा होती है ।।७८|| हिप्रदेशी परमाणु गुद्गल व्यवर्गणा से लेकर उत्कृष्ट संख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणा तक यह सब संख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गरणा है। इसके एक कम उत्कृष्ट संख्यात भेद होते हैं । उत्कृष्ट संख्यातप्रदेशी परमाण पूगल द्रव्य वर्गणा में एक अंक मिलाने पर जघन्य असंख्यातप्रदेशी द्रव्य वर्गणा होती है । पुनः उत्तरोतर एक-एक मिलाने पर असंन्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गगगायें होती हैं और ये सब उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात प्रदेणी द्रव्य वर्गणा के प्राप्त होने तक होती हैं। उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात में से उत्कृष्ट संख्यात के न्यून करने पर जितना शेष रहे उतनी ही असंख्यातप्रदेशी या वर्गणायें होती हैं । ये संख्यातप्रदेशी वर्गणामों से असंन्यातनगी होती हैं। असंख्यातलोक गुणाकार है। ये सब हो तीसरी असंख्यातप्रदेणी वर्गणा हैं।
उत्कृष्ट प्रसंख्यातासंस्थान प्रदेशी परमाणु पुद्गल द्रव्यवगंगा में एक अंक मिलाने पर जघय अनन्तप्रदेशी परमाणु पुद्गल द्रव्य वर्गगणा होती है। पुनः ऋम से एक-एक की वृद्धि होते हुए प्रभश्यों से अनन्तगगो और सिद्धों के अनन्तवं भाग प्रमाण स्थान प्रागे जाते हैं। अपने जघन्य से अनन्तप्रदेशी उत्कृष्ट वर्गणा अनन्त गुणी होती है । गुणकार अभव्यों से अनन्त गुणा अर्थात् मिद्धों के अनन्त भाग प्रमाण है, इस प्रकार यह अनन्तप्रदेशी द्रव्य वर्गणा चौथी है ।।४।।
६. धवन
१. धवल पु. १४ पृ. ५५ । २-३-४. धवल पु. १४ पृ. ५५। ५. धवल पु. १४ पृ. ५६-५७ । पु. १४ पृ. ५७ । ७. एक अंक से सर्वत्र एक प्रदेशा' समझना चाहिए।