Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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गाथा ५७४-५:१७
सम्यक्त्वमार्गग्गा/६४५
के साथ उक्त कथन का विरोध प्राता है।'
शंका-सूत्र कहने से उक्त कथन में कैसे विरोध प्राता है ?
समाधान-क्योंकि ऊपर कहे गये सात सौ बीम प्राणों को चार से गुणा करके जो गुणनफल प्राप्त हो उसमें सात कम नो सौं (८६३) और मिलाने पर सूत्र में कथित मुहर्त के उच्छ्वासों का प्रमाण होता है, इससे प्रतीत होता है कि उपक महर्त के उच्छ्वासों का प्रमाण सूत्रविरुद्ध है। यदि सात सौ बीस प्राणों का एक मुहूर्त होता है, इस कल्पना को मान लिया जाय नो केवल इक्कीस हजार छह सौ (२१६००) प्राणों के द्वारा ही ज्योतिषियों के द्वारा माने हुए दिन अर्थात् अहोरात्र का प्रमाण होता है, किन्तु यहाँ अागमानुकुल कथन के अनुसार तो एक लाख तेरह हजार और एक सौ नब्बे (११३१६०) उच्छ्वासों के द्वारा एक दिन अर्थात् अहोरात्र होता है ।
मुहर्न में से एक समय निकाल लेने पर शेष काल के प्रमाण को भित्र मुहर्त कहते हैं। उस भिन्नमुहूर्त में से एक समय और निकाल लेने पर मेध काल का प्रमाण अन्तमुहर्त होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर एक-एक समय कम करते हुए उच्छ्वास के उत्पन्न होने तक एक-एक ममय निकालते जाना चाहिए। वह सब एक-एक समय कम किया हुया कान भी अन्तर्मुहुर्त प्रमाण ही होता है। इसी प्रकार जब तक आवली उत्पन्न नहीं होती है तब तक शेष रहे हए एक उच्छवास में से भी एक-एक समय काल कम करते जाना चाहिए,ऐसा करने पर जो प्रावली उत्पन्न होती है, वह भी अन्तम'हर्त है। तदनन्तर दुसरी प्रावली के असंख्यातवें भाग का उस प्रावली में भाग देने पर जो लब्ध प्रावे वह (पावली का असंख्यातवा भाग) काल भी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही है । वह एक समय कम मुहूर्त भिन्न मुहूर्त अर्थात् उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है । उसके आगे दो समय प्रादि कम करते हुए पाबली के असंख्यातवें भाग तक ये सब अन्तर्मुहूर्त है ।
पंचास्तिकाय प्रामृत में व्यवहार काल के निम्नलिखित भेद कहे हैं
समग्रो णिमिसो कदा कला य णाली सदो दिवारत्ती। मास उडु अयणं संवच्छरो त्ति कालो परायत्तो ॥२५॥
-समय, निमिप, काष्ठा, कला, नाली, दिन और रात्रि, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर इत्यादि काल परायत्त है। (अन्य द्रव्यों के परिवर्तनाधीन हैं)।
निमेषाणां सहस्राणि पंच भूयः शतं तया ।
दश चंब निमेषाः स्युर्मुहूर्ते गणिताः बुधः ॥ (५११०) ॥११॥ -विद्वानों के द्वारा एक मुहूर्त में पाँच हजार एक सौ दस निमेष गिने गये हैं ! तीम मुहूर्त का
१. धवल पू.३ पृ. ६६ । २. घबल पु.३ पृ. ६७ । ३. धवल पु. ३ पृ. ६७ । ४. धवल पु ३ पृ. ६८ । ५. "सच एकसमयेन ही तो भिन्नमुहूर्तः उत्कृष्टान्नमुहूर्त इत्यर्थः । ततोऽने द्विसमयोनाद्या पावल्यसंख्यातकभागान्ताः सर्वेऽन्तम हुर्ताः ।" [स्वा. का. अ. गा. २२० टीका], ६. पंचास्तिकाय; धवल पु. ४ पृ. ३१७ । ७. धवल . ४ पृ. ३१८ ।।