Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६२०/गो. सा. जीवकाण्ड
गाथा ५६२
इस पार्ष वाक्य से सिद्ध है कि श्रुतकेवली या केवली के अतिरिक्त अन्य जीवों के क्षायिक सम्यक्त्व तो हो सकता है किन्तु अवगाढ़ या परमावगाढ़ सम्यक्त्व नहीं हो सकता।
तत्त्वार्थसूत्र मोक्षशास्त्र में "तन्निसर्गादधिगमाद्वा ॥१॥३॥” इस सूत्र के द्वारा 'सम्यग्दर्शन निसर्ग से और अधिगम से उत्पन्न होता है ।' ऐसा कहा गया है।
जो बाह्य उपदेश के बिना होता है वह नैसर्गिक सम्यग्दर्शन है और जो बाह्य उपदेश पूर्वक होता है, वह अधिगमज सम्यग्दर्शन है । इस प्रकार बाह्य निमित्तों की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के नाना भंद हो जाते हैं। दस प्रकार के सम्यग्दर्शन में से प्राज्ञा, अवगाढ़ और परमावगाढ़ सम्यक्त्व का स्वरूप कहा जा चुका है। शेष सात का स्वरूप इस प्रकार है - दूसरा मार्ग सम्यग्दर्शन है-इस में रत्नत्रय मोक्षमार्ग को कल्याणकारी समझ कर उस पर श्रद्धान करता है । प्रथमानुयोग में वरिंगत तीर्थकर आदि महापुरुषों के चरित्र को सुन कर श्रद्धान करना तीसरा उपदेश सम्यग्दर्शन है। चरणानुयोग में वरिणत मुनियों के चारित्र को सुन कर तत्त्वरुचि का होना चौथा सूत्र सम्यग्दर्शन है। करणानुयोग से सम्बद्ध गणित प्रादि की प्रधानता से दुर्गम तत्त्वों का ज्ञान बीजपदों के निमित्त से प्रारत करके तत्त्वार्थ श्रद्धान करना पांचों बीज सम्यग्दर्शन है । द्रव्यानुयोग में तर्क की प्रधानता से गित जीवादि पदार्थों को संक्षेप में जानकर तत्त्वरुचि का होना छठा संक्षेप सम्यग्दर्शन है। द्वादशांग श्रुत को सुन कर तत्त्व श्रद्धान होना सातवां विस्तार सम्यग्दर्शन है। विशिष्ट क्षयोपशम से सम्पन्न जीव के श्रुत के सुने बिना हो उसमें प्ररूपित किसी अर्थविशेष से तत्त्वश्रद्धान होना पाठवाँ अर्थ सम्यग्दर्शन है।
छह द्रव्य सम्बन्धी अधिकारों के नाम
छद्दन्वेसु य रणाम उवलक्खणुवाय प्रत्थरणे कालो । प्रत्थरण खेत्तं संखाठारणसरूवं फलं च हवे ॥५६२॥
गाथार्थ - छह द्रव्यों के निरूपण में सात अधिकार हैं। वे ये हैं—१. नाम, २. उपलक्षरणानुवाद, ३. स्थिति, ४. क्षेत्र, ५. संख्या, ६. स्थान-स्वरूप, ७. फल ।।५६२।।
विशेषार्थ छहों द्रव्यों के नामनिर्देश व भेद का कथन, नाम अधिकार है। जिसमें छहों द्रव्यों के लक्षणों का कथन है, वह उपलक्षणानुवाद अधिकार है । जिसमें पर्याय व द्रव्य की अपेक्षा स्थिति का. कथन हो वह स्थिति अधिकार है। द्रव्य जितने क्षेत्र को व्याप्त कर रहता है वह क्षेत्र अधिकार है। जिसमें द्रव्यों की संख्या का वर्णन हो वह संख्या अधिकार है। जिसमें द्रव्यप्रदेशों के चल व अचल या चलाचल का कथन हो वह स्थान स्वरूप अधिकार है। जिसमें द्रव्यों के उपकार का कथन हो वह फल अधिकार है। इन सात अधिकारों द्वारा जीवादि द्रव्यों का विस्तारपूर्वक कथन किया जाएगा जिससे द्रव्य सम्बन्धी विशेष ज्ञान होकर सम्यग्दर्शन निर्मल हो जाये।
१. “य बायोपदेशाद्ने प्रादुर्भवति नन्न सगिकम् । यल्परोपदेशपूर्वक जीवाद्यधिगमनिमित्तं तदुत्तरम् । " [म. सि.
३] । २. प्रात्मानुशासन श्लोक १२, १३, १४ की संस्कृत टीका के आधार से ।