Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
गाथा ५२६-५.३५
श्यामार्गग्रा / ५१७
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक, सूक्ष्म जलकायिक जीवों में कौन लेश्यावाले जीव उत्पन्न होते हैं ? इसका कथन क्यों नहीं किया ?
समाधान – इनका कथन अव्यक्त रूप से गाथा ५२८ में किया गया है। जिन एकेन्द्रियों का कथन गाथा ५२७ में किया गया है उनके अतिरिक्त सत्र एकेन्द्रिय जीवों का ग्रहण गाथा ५२६ में होता है । अतः तीन अशुभ लेश्याओं के मध्यम अंश के साथ मरने वाले कर्मभूमिया मनुष्य व तिर्यन उक्त एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ।
शङ्का - किस लेश्या के साथ मरण करनेवाले जीव पर्याप्त अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय व अपर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। इनका कथन क्यों नहीं किया गया ?
समाधान- इनका कथन भी गाथा ५२८ में किया गया है। 'वियलेसु' से इनका ग्रहण हो जाता है। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवों के अतिरिक्त सत्र विकल हैं। असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मन न होने से विकल है। संजी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवों के मन तथा चक्षुदर्शनोपयोग न होने से विकल हैं ।
इसका कथन
किम जीव के कौनसी वेश्या होती है, काऊ काऊ काऊ पीला खोला य गोलकिपहा य । किण्हा य परमकिण्हा लेस्सा पढमादिपुढवणं ।। ५२६ ॥ परतिरियाणं श्रोधो इगिविगले तिष्णि चज असणिस्स ।
सण- पुष्पगग -मिच्छे सासरय सम्मेवि प्रसुतियं ॥ ५३० ॥ भोगryone मे काउस्स जहगियं हवे रिलयमा । सम्मे वा मिच्छे वा पज्जत्ते तिणि सुहलेस्सा ।। ५३१ ।। अयवोत्ति छ लेस्साश्रो सुहतियलेस्सा हूँ देसविरदतिये | तत्तो सुक्का - लेस्सा जोगिठाणं अस्सं तु ।।५३२ ॥
कसाये लेस्सा उच्चदि सा भूदपुव्वगदिखाया । श्रहवा जोगपती मुक्खोत्ति तह हवे लेस्सा ।। ५३३ ॥ तिन्हं दोहं दोहं छण्हं दोहं च तेरसहं च । एतो य चोहसहं लेस्सा भवादिदेवाणं ।।५३४॥
तेऊ तेऊ तेऊ पम्मा पम्मा य सुक्का य परमसुक्का भवरगतिया
पम्मसुक्का घ । पुण्यागे श्रसुहा ।। ५३५||
गाथार्थ - प्रथम पृथ्वी में कापोल लेश्या, दुसरी पृथ्वी में कापोत लेश्या, तीसरी पृथ्वी में कापोत लेश्या व नील लेश्या: चौथी पृथ्वी में नील लेण्या, पांचवीं पृथ्वी में नील व कृष्ण लेण्या,